Ads Section

नवीनतम

10/recent/ticker-posts

ग़ज़ल

 हज़ार  मसले   घर में खड़े हो गए

जब मां बूढ़ी और बच्चे बड़े हो गए

 

हर बात पे ज़िद करते थे जो

उनको बरसों मां से लड़े हो गए

 

पीज़ा बर्गर  फास्ट फूड  अब खाते हैं

रसोई से गायब  पकोड़े  दही बड़े हो गए

 

मम्मी मम्मी कह कर लिपट जाते थे जो

मिलने आने पे  बस मुस्कुरा के खड़े हो गए

 

मां सुलझाती थी जिनकी हर उलझन

उनके लिए ज़रूरी दोस्तों के मशवरे हो गये

 

अब तो बस अपने आप में सिमटा रहता है बेटा

बहुत समय मां को सर पे हाथ धरे हो गए

 

आओ मां बैठो ना पास मेरे

 बेटे को  अरसा ऐसा कहे हो गए

 

साथ साथ खाते थे हंसते बोलते बतियाते थे

अब  बेटे की सूरत देखने वास्ते  मां के रतजगे हो गए

 

सन्नाटा सा पसरा रहता है हरदम

नाराज़ घर से कहकहे हो गए

 

बातों में तकल्लुफ होता है अब

फासले अब दरमियां हो गए

 

अब रोज ही लड़खड़ते कदमों से आते हैं घर

जब से बच्चे अपने पावों पे खड़े हो गए

 

प्रज्ञा पाण्डेय  (मनु)

वापी गुजरात