ग़ज़ल

अरुणिता
द्वारा -
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 हज़ार  मसले   घर में खड़े हो गए

जब मां बूढ़ी और बच्चे बड़े हो गए

 

हर बात पे ज़िद करते थे जो

उनको बरसों मां से लड़े हो गए

 

पीज़ा बर्गर  फास्ट फूड  अब खाते हैं

रसोई से गायब  पकोड़े  दही बड़े हो गए

 

मम्मी मम्मी कह कर लिपट जाते थे जो

मिलने आने पे  बस मुस्कुरा के खड़े हो गए

 

मां सुलझाती थी जिनकी हर उलझन

उनके लिए ज़रूरी दोस्तों के मशवरे हो गये

 

अब तो बस अपने आप में सिमटा रहता है बेटा

बहुत समय मां को सर पे हाथ धरे हो गए

 

आओ मां बैठो ना पास मेरे

 बेटे को  अरसा ऐसा कहे हो गए

 

साथ साथ खाते थे हंसते बोलते बतियाते थे

अब  बेटे की सूरत देखने वास्ते  मां के रतजगे हो गए

 

सन्नाटा सा पसरा रहता है हरदम

नाराज़ घर से कहकहे हो गए

 

बातों में तकल्लुफ होता है अब

फासले अब दरमियां हो गए

 

अब रोज ही लड़खड़ते कदमों से आते हैं घर

जब से बच्चे अपने पावों पे खड़े हो गए

 

प्रज्ञा पाण्डेय  (मनु)

वापी गुजरात

  

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