अपनी बात
बड़े विचित्र से दौर में पहुँच गया है हमारा समाज | कभी प्रेमी-प्रेयसी जैसे गरिमामय शब्द प्रचलित थे आज ‘पुरुष-मित्र’ और ‘महिला-मित्र’ जैसे शब्द चलन में हैं | दुखद तो यह है कि इन शब्दों में ‘मित्र’ जैसा शब्द भी शायद स्वयं को सम्मानित अनुभव नहीं कर रहा है | आधुनिक होना बुरा नहीं है लेकिन क्या अपने पूर्वजों के दिए गये संस्कारों को तिलांजलि दिए बिना आधुनिक होना सम्भव नही ? क्या दैनिक जीवन में विज्ञान की नवीनतम खोजों को अपनाना आधुनिक होना नहीं है ?
कबूतर या घुड़सवार के माध्यम से अपने सन्देश दूरस्थ स्थान पर भेजने के बजाय आज ईमेल या व्हाट्सएप्प के माध्यम से तात्कालिक रूप से सन्देश भेजना भी तो आधुनिक होना है | शिक्षकों द्वारा लकड़ी के साधारण से श्यामपट्ट के स्थान पर स्मार्टबोर्ड पर पढ़ाना भी आधुनिक होना है | बैलगाड़ी के स्थान पर तीव्रगामी रेलगाड़ियों या वायुयानों से यात्रा करना भी आधुनिक होने का प्रतीक है | नयी पीढ़ी के कम्प्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फोन भी हमारी आधुनिकता को ही दर्शाते हैं | इनके अलावा भी बहुत कुछ है जो हमें आधुनिक होने का आभास कराने के लिए प्रयाप्त है | फिर क्यों हम ‘दाम्पत्य’ जैसे पवित्र और अटूट बन्धन में बंधने और बंधे रह जाने के बजाय छोटी-छोटी अवधि के ‘रिलेशनशिप’ को बनाने और तोड़ने को ही आधुनिकता प्रमाण-पत्र मान बैठे हैं ? यह हमारी मूल संस्कृति नहीं है | नयी पीढ़ी को समझना चाहिए कि यही उनके तनाव और समस्याओं का बड़ा कारण है | पश्चिम देश तथाकथित ‘रिलेशनशिप’ को अपनाते आ रहे हैं क्योंकि उनके पूर्वजों में हमारे पूर्वजों जैसे ज्ञानी और मनीषी नहीं थे | हमारे पूर्वजों द्वारा स्त्री-पुरुष के लिए जो जीवन-शैली निर्धारित की थी उसने आज तक हमारे जीवन को, हमारी जीवन-शैली को और हमारे परिवारों अनावश्यक तनाव से मुक्त रखा हैं | ऐसी जीवन-शैली भारतवर्ष से पहले बाहर के देशों में नहीं जन्मी थी | इसलिए विश्वास रखिये इस मामले में भी हम ही आधुनिक थे, जिस तरह से आज सबसे पहले यूपीआई जैसे व्यवस्था हमारे देश में जन्मी है |
नये वर्ष में नयी पीढ़ी अपने भविष्य को सुनहरे रंगों से सजाये और अनावश्यक झंझटों से स्वयं से मुक्त रखे और अपने आप को देश की प्रगति में संलग्न करें इसी कामना के साथ नए वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ |
जय कुमार
(सम्पादक)