चाह मेरी है नए वर्ष में,
कुछ ऐसा हो जाए।
बेकारी हो दूर, सभी को
रोजगार मिल जाए।
कोई माँगे नहीं राह में,
गली गली में भिक्षा ।
अनपढ़ न रह पाए कोई,
मिले सभी को शिक्षा ।
कोई कड़वे बोल न बोले,
रखे न कोई बैर ।
इक दूजे को अपना समझें,
नहीं किसी को गैर ।
सड़कें बनें तो रीयल में हों,
केवल नहीं किताबों में ।
साधू बनकर ठगे न कोई,
बहे न कोई भावों में ।
मन से सदा पढ़ाएं टीचर,
सत्य मार्ग पे सब जन जाएं।
भ्रष्टाचार करें न नेता,
अफ़सर भी रिश्वत न खाएं ।
गाँव शहर हर गली गली में,
रक्खें लोग सफाई ।
कोख में मारी जाए न बेटी,
नीची हो मंहगाई।
पेड़ों को काटे न कोई,
हर जन वृक्ष लगाए
पर्यावरण बचाएं।
कहीं सड़क पर न हों गड्ढे ,
न ही पटरी पर हो जाम ।
हर किसान अपनी मेहनत के,
पूरे पूरे पाए दाम ।
बैंक नहीं देंवे ऋण उसको,
जो है नीरव, माल्या जैसा।
रहे बैंक में सदा सुरक्षित,
सभी जनों का इक इक पैसा।
धनी और निर्धन की खाई,
कुछ हद तक हो जाए कम।
स्त्री और पुरुष दोनों के,
हक हो जाएं बिल्कुल सम।
संविधान न खाए कोई ,
न कोई खाए ईमान।
संस्कारी सारे बच्चे हों,
अनुज करें अग्रज का मान।
सभी गाडियाँ चलें समय से,
लेट न होवे कोई रेल ।
घोटाला न करे कोई भी,
खेलों में न होवे खेल।
अस्पताल बीमार न होएं,
करे न कोई चोरी ।
लिव इन में न रहे कोई भी,
श्रद्धा जैसी छोरी।
विनय बंसल
आगरा, उत्तर प्रदेश