व्यंग्य
आज सुबह मेरे मित्र ने व्हाट्सएप पर एक शुभकामना संदेश भेजा जिसका मजमून इस प्रकार था-" अंगुलिया ही निभा रही है रिश्ते आजकल है, रिश्तो को निभाने का वक्त कहां है, सब टच में बिजी हैं पर टच में कोई नहीं है ।"
मैंने उत्तर दिया अंगुलियां रिश्ते तब भी निभा रही थी आज भी निभा रही है । कलम भी इन्हीं अंगुलियों ने थामी थी, खत भी इन्होंने लिखे हैं प्यार भरे भी, गम भरे भी । इन्ही अंगुलियों ने बना दिए कलमकार ,चित्रकार और संगीतकार। जब यह अंगुलियां साजों पर मचलीं तो सातों स्वरों का संगम करा आत्म विभोर कर देती हैं। कृष्ण की मुरली ने हाथों से होठों को छुआ तो सारा संसार रसमय हो गया। जयदेव ने रचा गीत गोविंद तो वे कृष्ण की प्रिया राधा बनकर कृष्ण को भी राधे बना गए । इसी एक अंगुली पर धारण कर लिया जब सुदर्शन चक्र तो संसार से पापियों का नाश हुआ।
इन्हीं अंगुलियों ने निर्माण किया । माटी गूंथीं और चाक पर चढ़ा दी । इंसान को बता दिया कि तुम माटी के पुतले हो और एक दिन माटी में मिल जाना है यह दर्शन इतना सहज भी नहीं था।
इन्हीं अंगुलियों ने ताजमहल रच कर प्यार का अर्थ समझा दिया । बना दी चीन की दीवार और ढेरों ऐसे आश्चर्य जिनकी कल्पना भी नहीं की थी। इन्हीं अंगुलियों ने दिए कोणार्क ,खजुराहो, बांध, नदियां और कहूं गंगा भी क्योंकि ओम नमः शिवाय बेशक कंठ से निकला लेकिन अंगुलियां प्राणायाम की मुद्रा में रही और गंगा को आना ही पड़ा। अंगुलियों ने रच दिए महाकाव्य ,खंडकाव्य,वेद ,पुराण, ऋषि, मुनि,, तपस्वी और पूरे विश्व में अपना महत्व
यही अंगुलियां मिलकर प्रणाम भी करती हैं तो चाणक्य की तरह उठी एक अंगुली विनाश का कारण भी बनती है ।तो सावधान मित्रों किसी की ओर उंगली उठाने से पहले सौ बार सोच लेना कि इन्होंने बंदूक भी थामी है और बम भी बनाए हैं।
यह अंगुलियां है किसी के कंधे थपथपा कर आश्वस्त भी करती हैं, दोस्ती भी निभाती हैं और आंसू भी पोंछती है।
जिन अंगुलियों ने कलम पकड़कर प्रथम अक्षर लिखना सीखा वही कंप्यूटर के कीबोर्ड पर चलकर विज्ञान को चुनौती दे रही हैं । अंगुलियों को चूमने का मन करता है जब यह मनचाहा निर्माण करती हैं। ये ही यश भी देती है, नाम चमकाती हैं तो ये ही विनाश का कारण भी बनती हैं।
अनमोल है ये। इन्हें कभी कमतर मत समझना क्योंकि आदमी को यहीं नचाती हैं, सुलाती जगाती और बनाती हैं । मित्रों यह अंगुलियां परमपिता परमात्मा की अनूठी कृति है जो सारे संसार को नचा रही है प्रणाम भी यही ,पसंद ना पसंद भी यही और अंगूठा भी यही दिखाती हैं । तो मित्रों अंगुलियां को हल्के में मत लेना और एक बात इन्हीं अंगुलियों ने बना दिया अंगुलिमाल डाकू जो औरों की अंगुलियां काटकर अपनी माला में डालकर गले में पहनता था।
अंगुलियां खास हैं।
सुधा गोयल
२९०-ए, कृष्णानगर, डॉ0 दत्ता लेन , बुलंद शहर, उत्तर प्रदेश