हुआ सवेरा

अरुणिता
द्वारा -
0

 

हुआ सवेरा मुदित दिशाएँ

अंधकार  भागा  धरती से।

सूरज आया स्वर्ण किरण ले

रोली तिलक लगा माथे से।।

 

प्रकृति का व्यवहार निभाया

जड़ चेतन का मन हर्षाया।

सूरज की किरणें जब आईं

पल भर में मौसम गरमाया।।

 

झूम उठी तरु पल्लव डाली

विजन डुलाती मलय समीरा।

निश्छल नदियाँ बह निकली

उच्छल चंचल निर्मल नीरा।।

 

कुछ अपनें धुन में गाती है

मतवाली कोयलिया काली।

मधुर  सुहानें  राग सुनाती

कुहूँ कुहूँ कर डाली डाली।।

 

सूरज के मद्धिम प्रकाश में

हँसे  पुष्प  मुस्काए    सारे।

फूलों पर इठलाती तितली

भँवरे गुनगुन प्यारे प्यारे।।

 

दे जाती  है  प्रकृति  हमारे

जीवन में खुशियों का खजाना।

खेत बाग़ बन घर आँगन में

नित्य लुटातीं विजय तराना।।

 

   विजय लक्ष्मी पाण्डेय

   आजमगढ़ उत्तर प्रदेश

 

 

 

 

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn more
Ok, Go it!