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मंसूबा

 


         उन दिनों पत्नी के साथ मेरा भारत चीन जैसा ताना तनी चल रही थी । तभी मैने पाकिस्तान जैसा एक नापाक चाल चली थी । घर में गाय और माय के अभेद्य किले को तोड़ने की चाल...!

गाय का दाम कल शाम को ही तय हो चुका था । दाम दूध-दूधारू और देह देख कर तय हुआ था। जुमन मियां बूढ़े-बांझ और" ऐब " वाले मवेशियों को बेचने का धंधा पिछले कई वर्षों से करता चला आ रहा था। इसके पहले उसका बाप इस धंधे में लगा हुआ था। कहा जाता है एक बार एक बूढ़े बैल ने बौखला कर अपनी दोनों लंबी सींग को जुमन के बाप के पेट में घूसेड दिया था।

अस्पताल जाते जाते रास्ते में उसने दम तोड दिया था। इसके बावजूद जुमन ने इसी धंधे को चुना था । वह सुबह तड़के उठता और गांव गांव में घूमता, चक्कर लगाता रहता-बिना खाये-पिये ! जैसे ही कहीं सौदा पट जाता-वहीं गमछी बिछा देता और अल्ला को याद करने बैठ जाता । मानो अल्ला मियां ने ही यह सौदा तय कराया हो । जुमन मियां पक्का कारोबारी आदमी था । उसके धंधे में आज तक कोई दाग नहीं लगा था । जो बात तय होती-उसे वह खुदा का फरमान समझता था । तय समय पर लोगों को पैसे देकर अपनी ईमानदारी का सिक्का जमा रखा था उसने । यही जान हमने भी उसके साथ उधार ही सौदा तय कर गाय दे देने का मन बना लिया था ।

गाय को छ:माह पहले ही खरीदी थी मैंने । काली गाय और खैरा उसका बछड़ा, दोनों ही मेरे मन को भा गया था। तब मन में दूध से ज्यादा " गो-सेवा की भावना थी । गाय लेने के वक्त मुझसे कहा गया था कि यह गाय इतनी सुधवा अर्थात अच्छी स्वभाव की है कि इसे औरतें भी बड़ी आसानी से दूध दूह लेती है । औरतें भी से मैने समझा था कि मर्द तो इसका दूध दूहते ही होगें-औरतें भी आसानी से दूध निकाल लेती होंगी ।

आज मुझे गाय के पहले मालिक को बड़ी बड़ी गालियां देने का जी कर रहा था-कमीने ने कमाल का झूठ बोला था और एक ऐब वाली गाय को मेरे गले बांध दिया था ।

दो दिन पहले अपनी कुछ बातों को मुद्दा बना कर पत्नी ने झगड़ा की और फिर मायके चली गयी । जाने से पहले तंज कसते हुए कहा था-" कहते हो यह हमारी खरीदी हुई गाय है- दूध निकाल लेना इसकी थान से तो जानू..तुम्हारी गाय है...!"

         पत्नी की अहम वाली बात और गाय की लात ने मुझे एकदम से पागल कर दिया था । गाय को गोहाल से बाहर कर देने का जैसे मुझे पर भूत सवार हो गया था । और इसी जुनून ने जुमन मियां से मिला दिया था । इसके पहले जुमन मियां से मै कभी मिला नहीं था। नाम के साथ बुलावा सुनते ही वह दौड़ा चला आया था ।

गाय-गोबर और दूध दूहने के नाम पर हर दिन पत्नी की चख चख से भी मै निजात चाहता था । गो सेवा का भूत भी अब सर से पुरी तरह उत्तर चुका था । दो दिन में ही लगा यह गाय मेरा गूह-मूत करा के छोड़ेगी-इससे छुटकारा अब केवल जुमन मियां ही दिला सकता था । पर कैसे ? अभी तो वह खुद गोहाल के बगल में बनी पक्की नाली में पसरा पड़ा हुआ था । सीधे छाती पर गाय की ऐसी लात पड़ी थी कि जुमन मियां सात जन्मों तक उसे भूला नहीं पायेगा । कहूं तो गाय मरखनी बन चुकी थी । दो दिन में ही उस पर जैसे लात मारने का भूत सवार हो चुका था । उसकी आंखों में अंगारे दहक रहे थे । जो भी उसके सामने जाता-दुश्मन नजर आता, उसमें मैं भी शामिल हो गया था । और उसकी लातों का पहला भुक्त भोगी भी मै ही बना था ।

पत्नी का मायके जाने के बाद गाय की थान से दो दिनों में दो बूंद भी दूध निकाल नहीं पाया था । उल्टे अब तक हम उसकी कई लातें खा चुके थे । गुस्साये-तिलमिलाये गाय की दूध की जगह अपनी छठी की दूध याद कर रहा था । यहां तक तो किसी तरह सह लिया था । बल्कि दिन की लात भी भूला देने का मन बना लिया था और सोचने लगा आखिर हमारे साथ गाय का यह भेद-भाव क्यों ? सुबह कुट्टी के साथ दररा-चारा मिला कर मै इसे खिलाता हूं । गुड-पानी मै पिलाता हूं । फिर दूध देने में इतनी भेद-भाव क्यों? दूध की जगह हमें लात क्यों खानी पड़ रही है ! 

उस दिन शाम को भी गाय से दूध नहीं ले सका । खाली लोटा देख मन तो भड़का परन्तु कुछ सोच कर शांत हो गया था ।

दूसरे दिन सुबह तो गजब ही हो गया। सहन शक्ति एक दम से जवाब दे गयी । हुआ यूं कि बछड़े की रस्सी बेटी पिंकी को पकड़ा दी और खुद दूध दूहने बैठ गया। अभी मैने गाय की थान पर अपना हाथ भी नहीं लगाया था-बस हाथ आगे बढ़ा ही रहा था कि जोर की लात सीधे बांयी चूतड पर पड़ी और फिर पड़ी ! यह देख पिंकी डर से चीख पड़ी। तभी बछड़े ने उसे जोर का झटका दिया । वह धम से जमीन पर गिर पड़ी । रस्सी उसके हाथ से छूट गयी । उठने की कोशिश की,वह उठती इसके पहले गाय उधर घूम गयी और कब एक लात उसे भी जमा दी-" बप्पा गो बप्पा….!" वह चिल्ला उठी तो उसे उठाने दौड़ पड़ा । इसके बाद तो मेरा क्रोध जैसे जाग उठा था । बगल कोने में पड़ी डंडा उठायी और तड़तड़ाकर दो-तीन ठंडे गाय पर चला दी । अब गाय रंभाने लगी । पिंकी मुझसे लिपट गई । बोली-"छोड़ दो बप्पा...!"

 अकस्मात मेरी जेहन में पत्नी से पहली मुलाकात-पहली रात और पहला सहवास की तस्वीरें और आज तक की एक उबाऊ भरी जिंदगी का खट्टा मीठा अनुभव मानस पटल पर किसी चलचित्र की भांति घूम गयी थी । उसकी इच्छा की परिधि के भीतर मै आज तक कदम नहीं रख सका था ।

गोहाल में खड़े खड़े कभी गाय को देखता तो कभी पत्नी के बारे में सोचता । दोनों के स्वभाव में कितनी सामनतांऐं थी । धीरे धीरे मेरे अंदर का क्रोध उबले दूध की तरह ठंडा होता चला गया था ।

इधर जुमन मियां फिर उठ खड़ा हुआ था । लेकिन अभी तक वह गाय गोहाल से निकाल नहीं पाया था। परन्तु वह भी जानवरों का पक्का लतखोर और थेथर आदमी था ।सो पुनः आगे बढ़ा था । उस वक्त हमारा गोहाल एक रणक्षेत्र में बदल चुका था । एक छोर में मै था, मेरी बेटी पिंकी थी और अपने अल्ला को याद करता जुमन मियां था । वहीं दूसरी ओर काली गाय और उसका खैरा बछड़ा था । युद्ध शुरू हो चुकी थी। जुमन मियां को बिगड़ैल जानवरों की जानकारी थी । जिद्दी भी था । किस जानवर को कैसे काबू में किया जाय, इसका बपौती हुनर था उसके पास ।

वह आगे बढ़ा था । अपनी सारी शक्तियों को समेट कर । अपने मरहूम बाप और खुदा को याद कर । पगहा उसके हाथ में था । और गाय ठीक उसके दो हाथ दूर खड़ी थी । जुमन मियां ने एक कदम आगे बढ़ाया । गाय ने जुमन मियां को कसाई की तरह आगे बढ़ते देखा । उसकी क्रोधित आंखें लाल अंगारों की तरह दहक रही थी और रह रह कर उसके आगे के दोनों पैर आगे-पीछे हो रहे थे । मतलब साफ था । वह जुमन मियां के लिए एक ललकार थी । जैसे कह रही थी-" आओ.. आज हम जीवन का आखरी दांव लगाते है..! इस घर में या तो मैं रहूंगी या फिर तुम जाओगे..!"

और जुमन मियां गाय की गर्दन को लपक लिया था । जिस तेजी से जुमन गाय की गर्दन पर सवार हुआ था । पगहा फंसाता कि अगले ही पल वह दीवार से जा टकराया था । गाय ने दूगूनी ताकत से उसे उछाल दिया था । उसे जोर का चक्कर आया और माथा पकड़ वहीं बैठ गया । उसके सर पर गहरी चोट लगी थी । मेरी आंखों के सामने का यह दृश्य किसी सिनेमायी से कम नहीं था । सोचा कुछ उपचार कर दूं उसका । यह सोच मै घर के अंदर गया । इतने में सतबजिया कमाडर गाड़ी से पत्नी मायके से वापस लौट आयी । आंगन में उसे जुमन मिल गया-" तुम मेरे घर में....?" आवाज रौबदार थी ।

रूई और डिटॉल लिए बाहर निकल-जुमन गायब ! देखा-पत्नी हवलदार की तरह आंगन में हाजिर है अपनी पूरी हसरतों के साथ !

श्यामल बिहारी महतो

बोकारो, झारखंड