जब से तुम मशहूर हो गए हो
तब से तुम मगरूर हो गए हो
बोल देते हो सच भरी महफिल में
क्यों इस कदर बे शऊर हो गए हो
लोगों दिमाग मे चल रहा है जो
तुम ही वो फितूर हो गए हो
रहते थे तुम पहले पहल जोश में
अब थक कर चूर हो गए हो
सादगी के तुम्हारे कायल थे हम तो
सज संवर के हूर हो गए हो
कैसे बुलाऊ तुमको नाम ले के मैं
अब तुम हाकिम हुजूर हो गए हो
बिन पिए मुझ जो चढ़ जाए मनु
तुम वो लाल सुरूर हो गए हो
इस कदर छा गए हो वजूद पे
मुझे बे शर्त मंजूर हो गए हो
प्रज्ञा पाण्डेय ‘मनु’
वापी गुजरात