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उतरन

 


         शोभा के माता पिता की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो जाने के बाद उसे उसके मामा अपने साथ ले आए, क्योंकि उसके  परिवार में अन्य कोई भी नहीं था जो उसकी देखभाल कर सके । उसके दादा दादी की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी और पिता अपने माता-पिता के इकलौती संतान थे, इसलिए मामा के अतिरिक्त उसका और कोई ठिकाना नहीं था । सात वर्ष की शोभा को देखकर मामी नाक भौंह सिकोड़ती बोली 

   "कैसी अभागी है मां बाप को खा गई, और हमारे सिर पर बोझ बन कर आ गई है । हम अपने बच्चों को देखें या इसे"!

  शोभा जिसे अभागी का अर्थ भी पता नहीं था, मामी के मुंह से ऐसी फटकार सुनकर घबड़ा गई । यही मामी जब वह अपने मम्मी-पापा के साथ आती थी तब कितना प्यार दिखाती थी । मामा मामी के एक बेटा और एक बेटी थे । मिनी शोभा से छोटी थी, वह चार वर्ष की थी और छोटा दीपू अभी मात्र एक वर्ष का ही था ।

  मामी के नहीं चाहने पर भी शोभा मामा जी के दबाव के कारण उस घर में रह रही थी । धीरे-धीरे मामी ने शोभा से घरेलू काम लेना प्रारंभ किया ।

   समय आदमी को सब कुछ सिखा देता है । शोभा समय से पहले समझदार हो गई । वह धीरे-धीरे घर के सभी काम सीख गई और मामी के अधिकतर काम वह कर देती । उनकी अपनी बेटी मिनी  तो नाजों पली थी, वह उनकी प्यारी दुलारी थी । उसे कुछ भी नहीं कहती, और सारा काम शोभा से ही करवाती । शोभा को घर में पढ़ाई का भी बहुत कम अवसर मिलता था । वह तो मामाजी के कारण उसके स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई चल रही थी वरना मामी तो उसे पढ़ाने के पक्ष में बिल्कुल नहीं थी । लेकिन मामा जी के आगे उनकी एक नहीं चली ।

   परन्तु एक मामले में मामा जी ने भी आंखें बंद कर ली, आखिर वह मामी से कितना विरोध करते । मामी ने कभी भी शोभा को नए कपड़े नहीं दिए, वह हमेशा  मिनी की उतरन ही पहनती । मिनी भरे पूरे शरीर की मलिका थी,वहीं शोभा बहुत दुबली पतली । उसे भरपूर पौष्टिक भोजन भी तो नहीं मिलता था,इसलिए उसका शारीरिक विकास अधिक नहीं हो पाया था । इसलिए मिनी के कपड़े उसे आ जाते । तीनों बच्चे बड़े हुए । शोभा जहां शांत और गंभीर थी वही मिनी और दीपू बहुत अधिक चंचल और कुछ जिद्दी भी थे । उन्हें अपनी पसंद की हर वस्तु मांग करने के साथ मिल जाती,कभी-कभी तो मांगने की भी आवश्यकता नहीं होती थी वहीं शोभा को स्कूल की कॉपी किताबों के लिए भी मामी की मिन्नतें करनी पड़ती । जब मामी से मिन्नत करके थक जाती और नहीं मिलता तब वह मामाजी से कहती थी । मामाजी उसकी आवश्यकता की वस्तुएं ला तो देते थे परंतु उसके बाद मामी और मामा में बहुत अधिक लड़ाई होती थी,इसलिए शोभा का प्रयास होता था कि वह मामा तक बहुत मजबूरी होने पर ही अपनी आवश्यकता लेकर पहुंचे ।

   शोभा हर क्लास में फर्स्ट आती रही । उसने मैट्रिक और इंटर में भी अपने विद्यालय में टॉप ही किया था,इसलिए उसे प्रत्येक वर्ग में छात्रवृत्ति मिलती थी । इस कारण भी मामी उसकी पढ़ाई रोक पाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी ।जिस समय वह स्नातक में पढ़ रही थी उसी समय से रवि जो स्नातकोत्तर का विद्यार्थी था उससे बहुत प्रभावित था । उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी वह जानता था क्योंकि वह उसी की कॉलोनी में रहता था ।

 वह शोभा को पढ़ाई में भी सहायता करता । धीरे-धीरे उनका आपस का सामान्य सा संबंध कब अमिट प्यार में बदल गया,उन दोनों को ही पता नहीं चला । एक दिन अवसर देखकर रवि ने उसके सामने अपना प्रेम प्रगट भी कर दिया और कहा –

    "मेरा लक्ष्य यूपीएससी करना है,मैं उसकी तैयारी भी कर रहा हूं । तुम तब तक मेरी प्रतीक्षा करना । कहीं विवाह मत कर लेना, मैं तुमसे ही विवाह करूंगा । दोनों का प्रेम बहुत शालीन था, उन्होंने अपने प्रेम की पवित्रता बनाए रखा। रवि ने कभी शोभा को छूने का भी प्रयास नहीं किया । उन दोनों का प्रेम आत्मिक था । समय बीतता रहा । शोभा स्नातकोत्तर कर नेट परीक्षा पास कर चुकी थी। जे.आर.एफ. मिला था इसलिए उसके पी.एच.डी. में भी कोई अड़चन नहीं आने वाली थी । उसकी पी.एच.डी. के लिए शोध कार्य प्रारंभ हो गया था ।

   रवि प्रथम प्रयास में चयनित नहीं हो पाया था । उसने पीटी और मुख्य परीक्षा पास की परंतु साक्षात्कार में नहीं  पास हो पाया था । दूसरी बार उसने पूरी शक्ति से तैयारी की । दीन दुनिया भुला कर बस दिन-रात पढ़ाई में लगा रहा,और इस बार वह चयनित हो गया था उसे प्रशासनिक सेवा मिला था । रिजल्ट आने के बाद रवि ने शोभा को मिठाई खिलाते हुए कहा –

    "मैं अपनी मां को तुम्हारे घर भेजूंगा तुम्हारे मामा मामी से तुम्हें मांगने के लिए । मैं चाहता हूं प्रशिक्षण में जाने के पूर्व हमारी शादी हो जाए । मैं प्रशिक्षण प्राप्त करूंगा और तुम अपनी पी.एच.डी. पूरी करना"!

  दोनों हाथों में हाथ डाल सपने संजो रहे थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था भविष्य में क्या होना है । उनके प्रेम के विषय में शोभा के घर में मिनी सब कुछ जानती थी । उसने एक दो बार कॉलेज में शोभा को रवि के साथ अकेले बैठे बात करते देख लिया था । एक दो बार बाहर भी वह दोनों को साथ-साथ देख चुकी थी । फिर तो उसने जोड़ घटाव गुणा भाग सब कर दिया और शोभा के पीछे पूरे साजों सामान के साथ पिल ही तो पड़ी थी । पहले तो शोभा ने बात को टालना चाहा वह पढ़ाई में मदद ले रही थी रवि से कहकर, परंतु मिनी कहां मानने वाली थी । आखिर उसने शोभा से उन दोनों के आपसी प्रेम की बात स्वीकार करवा ही ली । पहले तो उसने शोभा का बहुत मजाक उड़ाया –

     "क्या दीदी तुम्हें पूरी दुनिया में सिर्फ वही मिला था ! अरे, उसका घर देखा है !दो कमरे का कितना साधारण सा घर है ! सुना है उस पर भी कर्जा लिया हुआ उन लोगों ने महाजन से ! उसके पिता भी नहीं हैं । दो दो सयानी बहने ! रुपए के अभाव में उनकी शादी नहीं हो रही है ! रवि ने तो अच्छा तुम्हें फसाया ! उसे पता है तुम पढ़ने में बहुत तेज हो,तुम अवश्य कोई अच्छी नौकरी करोगी,और फिर उसका घर चलाने में उसकी सहायता करोगी । तुम जिंदगी भर कमाकर उसके घरवालों का पेट भरती रहना"!

    शोभा ने उसे आगे कुछ भी कहने से रोक दिया और अभी यह बात घर में किसी को नहीं बताने का वचन मांगने लगी –

    "देख मिनी ! हमने तय किया है पढ़ाई समाप्त होने के बाद मेरी भी नौकरी हो जाएगी, और वह भी नौकरी करने लगेगा, तब हम विवाह करेंगे । रवि यूपीएससी  की तैयारी कर रहा है । यूपीएससी में वह यदि चयनित हो जाता है तो उसकी अच्छी नौकरी हो जाएगी और मेरी नौकरी कॉलेज में नहीं भी हुई तो स्कूल में तो हो ही जाएगी"।

   मिनी  – " हां हां सपने देखो तुम दिन में ! तुम्हारी नौकरी तो अवश्य हो जाएगी स्कूल में, इसकी मैं गारंटी लेती हूं ! यदि ऐसे नहीं भी होगी तो पापा ही कहीं  तुम्हारी नौकरी अवश्य लगवा देंगे । हां तुम पापा से कहोगी तो वह उसे भी कहीं न कहीं सेट करवा ही देंगे । जहां तक यूपीएससी की बात है बड़े-बड़े लगे रह जाते हैं तैयारी करते हुए परंतु यूपीएससी क्रैक नहीं कर पाते । इसके पास तो कोई साधन भी नहीं है । कोचिंग के लिए कहां से इतने पैसे खर्च करेगा ! अभी तक तो मैंने जितने लोगों का भी सुना है सभी ने दिल्ली में रहकर बड़े-बड़े कोचिंग में जाकर तैयारी किया था। बड़े-बड़े कोचिंग में जाकर तैयारी करने के बाद भी सभी कहां निकाल पाते हैं यूपीएससी । उनमें से कुछ ही निकाल पाते हैं, फिर रवि बिना साधन के कहां क्रैक कर पाएगा"।

 शोभा मैं उससे बहस करना उचित नहीं समझा और कहा –

   "अच्छा जाने दो छोड़ो इस बात को, तुम मुझे वचन दो घर में किसी को नहीं बताओगी रवि के विषय में"।

   "चलो तुम कहती हो तो मैं वचन देती हूं, जब तक तुम स्वयं नहीं कहोगी मैं किसी को नहीं बताऊंगी"। मिनी ने उसे  वचन दिया ।

   शोभा ने मिनी के द्वारा ही अपना प्रेम मामा मामी तक पहुंचाने का सोचा था । जब घर पहुंची तो देखा रवि की मां निकल कर जा रही थीं । उन्हें देखते ही उनके कदमों में झुक गई शोभा । बहुत श्रद्धा से उनका चरण स्पर्श किया । उन्होंने भी बहुत प्रेम से उसे आशीर्वाद देते हुए कहा –

   "सुखी रहो बिटिया ! अब तो तुम हमारी संबंधी बनने वाली हो ! ऐसे भी पूरे मोहल्ले में सभी के मुख पर तुम्हारे गुण शील के ही चर्चे रहते हैं"।

   सिर झुकाए उनका आशीर्वाद लेती उनकी बातें सुनती रही । तभी पीछे खड़ी मामी ने रवि की मां को गले लगाकर उन्हें  विदाई दी –

   "हमने पिछले जन्म में अवश्य मोती दान किए होंगे, जो हमें घर बैठे इतना अच्छा हुआ लड़का और ऐसा परिवार मिला । मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती थी हमारी बेटी के लिए घर बैठे ही हमें इतना अच्छा रिश्ता मिल जाएगा । आप तो जाने के लिए इतना हड़बड़ा गई हैं, मिनी के पापा अभी आते ही होंगे, उनसे मिलकर जाती तो अच्छा होता"।

    "अगले दिन कभी उनसे बात कर लूंगी अभी बहुत आवश्यक काम है, इसलिए जा रही हूं अब आप तो हमारे संबंधी हो गये, आना जाना लगा ही रहेगा" – कहती हुई रवि की मां वहां से चली गईं ।  कुछ देर तक तो शोभा दरवाजे पर विमूढ़ सी खड़ी रह गई ।

   एक बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी, उन्होंने ऐसा क्यों कहा ’तुम तो हमारी संबंधी बनने वाली जा रही हो’ वह संबंधी कहां उनके परिवार की सदस्य होने जा रही है । तभी मामी ने उसे आवाज दिया – शोभा अब बाहर क्यों खड़ी हो, किसका इंतजार कर रही हो,कोई आने वाला है क्या, क्या अच्छी लड़कियों के यही लक्षण हैं, भीतर आ जाओ"।

मामी  की तीखी आवाज से वह चौंक गई और चुपचाप भीतर आ गई । उसे कुछ अनहोनी की आशंका होने लगी थी । मामी ने उसी तीखे स्वर में पुनः कहा –

   "ऐसा न हो तुम्हारे इन लक्षणों के कारण हमारा परिवार बदनाम हो जाए और मिनी की लगी लगाई बात में कुछ अर्चन आ जाए"।

    "मैं समझी नहीं मामी आप कहना क्या चाहती हैं, मिनी की किस बात में मेरे कारण अर्चन आएंगे, मैंने क्या किया"?

   "यूं ही सुबह की निकली हुई शाम ढले तक घर आती हो, ऐसे बाहर खड़ी रहोगी, बाहर किस किस से मिलती हो, इससे बदनामी होगी या नहीं होगी"! मामी ने उस पर कटाक्ष करते हुए कहा ।

   "मामी मैं अपने रिसर्च के लिए जाती हूं । अधिकतर लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई करती हूं, या विभाग में रहती हूं। कहीं जाती भी हूं तो रिसर्च के काम से, और फिर वापस घर आती हूं । मैं कहीं व्यर्थ इधर उधर नहीं घूमती, इसलिए मेरे कारण आपकी बदनामी होने की बात सोचना निराधार है । निश्चिंत रहिए, आपकी किसी तरह की कोई बदनामी नहीं होगी"। उसका मूड खराब हो गया था, दिल में कड़वाहट भर गई थी । कहां तो सोच रही थी आज मिनी को मनाएगी अपने और रवि के विषय में मामा मामी से बात करने के लिए । उसका सिर इतना अधिक दर्द करने लगा था अब उसे कुछ भी इच्छा नहीं हो रही थी । वह कमरे में आकर कपड़े निकाल कर बाथरूम में जाने लगी फ्रेश होने के लिए, तभी मिनी ने उसे घेर लिया –

    "देखो दीदी यह लॉकेट ! बताओ कैसा है, मुझे कहां से मिला"!

   "क्या मामी ने नया बनवाया तुम्हारे लिए"?  – नहीं चाहते हुए भी उसे मिनी की बातों का जवाब देना पड़ा

    "नहीं ! मेरी ससुराल से! रवि की माताजी लेकर आई थीं"!

   क्या ! तुम्हारी ससुराल ! रवि की माता जी ! मैं कुछ समझी नहीं, तुम्हारी ससुराल से रवि की माता जी का क्या संबंध, और तुम्हारी शादी कब तय हुई"?

   "दीदी तुम्हें नहीं पता आज दिन में पापा और मम्मी रवि के घर गए थे, वे रवि का  रोका कर आए । अभी कुछ देर पहले रवि की मां यहां आकर मुझे यह पहना कर गईं"।

 सुनकर शोभा तो सन्न रह गई । यह क्या हो गया ! रवि ने तो अपनी मां को उसके लिए बात करने के लिए भेजने की बात कही थी, फिर उसने अपना रोका मिनी के साथ कैसे करवा लिया, क्या उसने धोखा से रोका करवाया ?

   "दीदी क्या तुम्हें सुनकर खुशी नहीं हुई, क्या सोचने लगी तुम"? मिनी ने उसके चेहरे के समक्ष चुटकी बजाई ।

   "मिनी तुम जानती थी न मेरा और रवि का संबंध, फिर भी....."

  शोभा की बात अधूरी रह गई । मिनी ने बीच में ही कहा –

   "मुझे कुछ कहने का अवसर ही नहीं मिला पापा और मम्मी रवि का रोका करके आ गए थे । रवि की मां आई और यह लॉकेट पहना कर मेरा रोका कर दिया । छेका, तिलक, रिंग सेरिमनी और विवाह सब का दिन तय हो चुका है । अब मैं क्या कर सकती थी ?"

   "परंतु मिनी तुम्हें पता है रवि का मुझसे प्यार है, क्या वह तुम्हें प्यार दे पाएगा, तुम उसके साथ सुखी जीवन बिता पाओगी ? तुम्हें तो रवि और उसका परिवार अपने स्तर का नहीं लगता था"?

   शोभा को अभी भी उम्मीद थी मिनी शायद इस विवाह से इंकार कर दे और उन दोनों के प्यार की बात घर में सबको बता दे ।

    "अरे दीदी ! वह तो तब की बात थी अब तो वह उच्च श्रेणी का सरकारी अधिकारी बनने पर उसके परिवार की स्थिति ऐसे ही सुधर जाएगी । और उसका कौन सा बड़ा परिवार है ? उसकी बहनो की शादी तो हमारी शादी के पहले ही हो जाएगी । पापा उन दोनों की शादी अपने खर्चे पर करवा रहे हैं । अब घर में सिर्फ उसकी मां ही तो रहेंगी और रह जाएगी शान शौकत वाली जिंदगी । दीदी फिर सुखी जीवन क्यों नहीं रहेगा"।

    मामी और मिनी की बात तो वह समझ सकती थी । वे सिर्फ अपने लिए सोचती थीं । मामी ने तो ऐसे भी शोभा को कभी अपने परिवार का हिस्सा माना ही नहीं, परंतु मामा ने कैसे ऐसा किया ! माना उन्हें शोभा और रवि के आपसी संबंध की जानकारी नहीं थी परंतु मिनी से चार वर्ष बड़ी होने के कारण उन्हें पहले उसके विवाह के लिए सोचना चाहिए था !

       "दीदी दीदी" दीपू की आवाज सुन कर वह सजग हुई। इतनी देर में उसने कपड़े भी नहीं बदले थे, ऐसे ही बैठी हुई थी ।

   "दीदी मां कब से बुला रही हैं आपको खाना खाने के लिए । क्या सोच रही हैं"?

   "तू चल मैं आ रही हूं"

     कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई ।देर तक पानी के छींटे आंखों पर डालती रही और कपड़े बदल कर भोजन कक्ष में आ गई । आज उसने रसोई का भी कोई काम नहीं किया था, इसलिए वह अपने को तैयार करके आई थी मामी की जली कटी सुनने के लिए । लेकिन मामी आज अत्यंत प्रसन्न थी इसलिए या फिर हो सकता है सामने मामा थे इसलिए भी उन्होंने कुछ भी नहीं कहा और प्लेट में रखे हुए मिठाई से एक टुकड़ा उठाकर उसके मुंह में डाल दिया और कहा –

शुभ समाचार है, मिनी की शादी तय हो गई है । अगले महीने ही विवाह होगा । समय बहुत कम बचा है । इस बीच छेका, तिलक, रिंग सेरिमनी और विवाह सभी की तैयारियां करनी है । तुम कुछ दिन रिसर्च के काम से अवकाश ले लो"।

    उसने खामोशी से सिर उठाकर मामी और मामा की ओर देखा । मामा की नजरें झुकी हुई थी –

    "हम तो चाहते थे पहले तेरी डोली उठती यहां से, परंतु तेरा पी.एच.डी. प्रारंभ हुआ है । मिनी बीए की परीक्षा दे ही चुकी है । उसकी आगे पढ़ाई में कोई रुचि नहीं है । इसलिए हमने पहले उसका विवाह तय किया"।

   अपने दिल पर पत्थर रखकर उसने मामी और मामा को साथ ही मिनी को भी शुभकामनाएं दी । जानती थी इस घर के एहसान का बदला उसे चुकाना होगा । लेकिन रवि ने कैसे स्वीकार किया यह नहीं समझ पा रही थी। क्या उसने कहा नहीं वह मुझसे प्यार करता है"?

   उसने सोचा था वह रवि से मिलकर उससे अवश्य पूछेगी इस संबंध में,परंतु इसकी नौबत ही नहीं आई । बड़बोली मिनी ने स्वयं ही उजागर कर दिया । रवि तो इस विवाह के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था । उसने अपने घर में भी शोभा के विषय में ही कहा था । मामा–मामी से भी वह शोभा से विवाह करने की बात ही कह रहा था । परंतु मिनी से विवाह करने पर उसकी दोनों बहनों के विवाह की जिम्मेवारी मामा–मामी ने अपने ऊपर ले ली । इस बात ने रवि को झुकने पर मजबूर कर दिया । वह अपनी बहनों के सुनहरे भविष्य के लिए बिक गया था मामा–मामी के हाथों ।

   मामा ने अपने परिचय क्षेत्र में अच्छे लड़कों से उनका विवाह करवा दिया और उनके द्वारा मांगी गई दहेज की राशि स्वयं दे दी । उसे यह भी पता चला मामा तो रवि का विवाह शोभा से करने के लिए तैयार थे परंतु मिनी और मामी के आगे उनकी एक न चली,और मिनी का विवाह रवि से तय करना पड़ा ।

   विवाह के दिन जयमाला और विवाह के सभी रस्म की वह गवाह रही । रवि की दृष्टि तो झुकी हुई थी परन्तु मिनी ! वह तो गर्व से उसे ऐसे निहार रही थी जैसे कह रही हो  –

  ’देखा तुम्हारी औकात ! मैंने तो तुम्हारा प्रेम भी छीन लिया ! मुझ में इतनी शक्ति है’ !

  विवाह के बाद विदाई के पहले जब दूल्हा-दुल्हन सभी बड़ों को प्रणाम कर रहे थे,उसके पास आकर रवि ठिठक गया । वह किनारे हो गई,परन्तु मिनी ने आगे बढ़कर उसे प्रणाम किया और कहा –

    "दीदी आशीर्वाद दो । आशीर्वाद के रूप में तुम मुझे क्या उपहार दे रही हो ?सभी कुछ न कुछ उपहार दे रहे हैं,तुम भी तो दो"!

    "मैं तो तुम्हें पहले ही उपहार दे चुकी । वैसे सच कहूं तो मेरे देने की नौबत ही नहीं आई । मेरा सब कुछ तो तुमने स्वयं ही छीन लिया । अब मैं तुम्हें क्या दूं ? रवि को ही मेरी ओर से दिया उपहार समझ लो । जिंदगी भर मैं तुम्हारी उतरन पहनती रही,और अब से पूरी जिंदगी तुम मेरी उतरन के साथ अपना जीवन व्यतीत करना । मेरी शुभकामना है रवि का साथ तो तुम्हें मिल गया उसका दिल से प्रेम भी तुम्हें मिल जाए"।

      शोभा गर्व से सिर उठाकर वहां से आगे बढ़ गई और मिनी आंखों में क्षोभ और क्रोध भरे उसे देखती ही रह गई !

   निर्मला कर्ण

  रांची,झारखंड