राम्या... अपने नाम के अनुरूप सुन्दर व आकर्षक, अति आत्मविश्वास की धनी, तर्क करने में माहिर महिला, शहर के जाने माने वकील श्री दिलीप अग्रवाल की पत्नी। कैसा भी केस हो, जीत दिलीप जी की ही होती। राम्या भी अपने आगे किसी को ना ठहरने देती।
आज वही राम्या अग्रवाल, बिस्तर पर पड़ी हुईं हैं और बसंती, उनकी बहुत पुरानी कामवाली उनकी सेवा कर रही है। एक यही है जो आज भी उनके साथ है वरना बाकी सभी.. जो किसी समय उनके आगे-पीछे घूमते थे, एक-एक कर सब छोड़ कर चलते बने। अब तो कोई झाँकता भी नहीं इधर।
आज राम्या जी की आँखों में आँसू हैं, पश्चाताप है और उनको अपने पहले के दिन याद आ रहे हैं कि पहले कैसे वो रौबदार, सुन्दर व आकर्षक व्यक्तित्व की महिला थीं। उनके आगे किसी भी क्षेत्र में कोई नहीं ठहर सकता था।
अपनी इसी बात व पति के नाम का फायदा उठा वो धीरे-धीरे राजनीति क्षेत्र में आ गईं और नित नई ऊँचाइयाँ चढ़ने लगीं। क्या रिश्तेदार और क्या सभी लोग... सब उनके आगे-पीछे घूमने लगे। भाभी जी.. चाची जी.. सखी... मैडम और भी नए-नए नामों से नवाज़ कर लोगों ने उनसे नए रिश्ते बना लिए। लोगों ने मौके का फायदा उठा कर, चापलूसी कर अपने कई काम निकलवाये। कैसा भी काम हो, वो पूरा करवा देतीं। वो भी अपने घमंड में चूर होकर ऐसे ही लोगों से घिरीं रहतीं। जो उनकी तारीफों के पुल बाँधा करते।
जिस किसी ने भी उनको समझाइश देनी चाही, उनको वो एक-एक कर अपनी ज़िंदगी में से निकालतीं गयीं। राम्या जी के माता-पिता ने भी उनको समझाया कि "राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। सब अपने मतलब से काम निकालते हैं। राजनीति के क्षेत्र में सब उगते सूर्य को नमस्कार करते हैं। डूबते सूरज को कोई नहीं पूछता। ये जो इतने लोग आगे-पीछे अलग-अलग नामों से रिश्ता बना कर घूम रहें हैं। सब मौसमी रिश्ते हैं। समय के साथ सब साथ छोड़ देंगे।"
पर राम्या जी को तो जैसे सफलता का नशा सा चढ़ा था, उन्होंने किसी की भी ना सुनी।
इस कारण उन्होंने अपने इकलौते बेटे पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। उनकी उम्र भी बढ़ती गयी। माता-पिता, सास-श्वसुर सब परलोक गमन कर गए। बेटा अमेरिका पढ़ने गया तो वहीं का होकर रह गया। उसने वहीं विवाह कर लिया।
थोड़े समय बाद पति का भी साथ छूट गया। अब राम्या जी की भी उम्र हो चली थी तो अब वो ज्यादा
राजनीति के क्षेत्र में अगर आप भागदौड़ नहीं कर सकते। रूपया खर्च नहीं कर सकते तो आप किसी काम के नहीं। राम्या जी के साथ भी यही हुआ। नई उम्र के लोग आगे बढ़ गए और धीरे-धीरे उनको एक तरफ कर घर बिठा दिया गया। अब उनको कोई नहीं पूछता। ना कोई झाँकता।
वो तनावग्रस्त हो गईं साथ ही बीमारियों के चलते चिढ़चिढ़ी भीं। अब वो अपने कोठीनुमा बंगले में अकेली बसंती और उसके परिवार के साथ रह रहीं हैं। बेटे ने कोशिश करी कि वो इस कोठी को बेच कर एक छोटे घर में रहने लगे और बाकी का धन उसको देदें। पर राम्या जी ने ऐसा करने से मना कर दिया तो फिर बेटे ने भी उनको उनके हाल पर छोड़ दिया।
अब उनकी तबियत कुछ ज्यादा ही खराब रहने लगी। अब उनको उनके माँ-पिताजी द्वारा कही गयीं सब बातें याद आ रहीं थीं और मौसमी रिश्तों का मतलब समझ आ गया था कि कैसे लोगों ने अपने मतलब से रिश्ते बनाये और फिर छोड़ दिया।
तभी रेडियो पर ये गाना बजने लगा..
"न जाने कैसे पल में बदल जाते हैं
न जाने कैसे पल में बदल जाते हैं
ये दुनिया के बदलते रिश्ते
क्या जाने कैसे रंगों में ढल जाते हैं
ये दुनिया के बदलते रिश्ते......"
अब राम्या जी अपने आँसू पोंछते हुए अचानक से मुस्करा उठीं और एक निर्णय ले लिया कि जब तक वो ज़िंदा हैं तब तक ये घर ऐसे ही रहेगा और उनके बाद इस घर को एक वृद्धाश्रम बना दिया जाएगा। बसंती और उसका परिवार वृद्धाश्रम को संभालेंगे और यहीं रहेंगे। क्योंकि बसंती और उसका परिवार.. ही एकमात्र लोग थे जो अभी तक उनके साथ थे चाहे कितने ही मौसम आये.. गए.. पर बसंती ने उनका साथ नहीं छोड़ा। बसन्ती को भी उसकी निःस्वार्थ सेवा का फल मिल गया था।
ऋतु अवस्थी त्रिपाठी
इन्दौर, मध्य प्रदेश