अमृत-महोत्सव

अरुणिता
द्वारा -
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 हम सभी इस बात से भली भांति अवगत है की इस वर्ष भारत को आजाद हुए 75वर्ष पूर्ण हो जायेंगे,  जो हम भारत वासियों के लिए गर्व का विषय है।  जिसे हम आजादी के अमृत महोत्सव के नाम से मना रहे है जो 15 अगस्त 2023 तक चलेगा  जिसका मतलब होता हैं ---

स्वतंत्रता सैनानियों से प्राप्त प्रेरणा का अमृत यानि नए विचारों का अमृत, नए संकल्पों का अमृत ।  

एक ऐसा राष्ट्र पर्व जिसे मानने के लिए किसी जाति धर्म की आवश्यकता नही है ,बस जरूरत है, एक भक्ति भावना की जो देश भक्ति से भरी हो, एक ऐसा पर्व जो आत्म निर्भर होने का संकल्प ले ,जिसका उद्देश्य देश के विकास,प्रगति,में युवाओं में जागरूकता और रुचि की भावना बढ़ाए।                          

अब जाने की इसे अमृत महोत्सव का नाम क्यों दिया गया या क्यों मनाया जा रहा है।                       

 जैसा कि हम सभी जानते है कि हमारा देश भारत को अंग्रेजों ने गुलाम बना रखा था उससे हमें इसी दिन आजादी मिली थी।दूसरी ओर देखें तो देश को स्वतंत्र होने के लिए जिन राष्ट्र सपूतों ने बलिदान दिया और अत्यधिक कष्ट सहने पड़े , उन्हें याद करने का दिन है ।   

तीसरा कारण यह भी है कि अमृत महोत्सव के माध्यम से उन सभी लोगों को स्वतंत्रता और लोकतत्र के सही मायने बताने बहुत आवश्यक है और साथ ही यह आज की युवा पीढ़ी एवम बच्चों को करा दिया जाए कि इन 75 वर्षों में भारत ने क्या नई उपलब्धियां हासिल की।             

आज देखा जाए तो हमारी युवा पीढ़ी  18 से 35 वर्ष तक के लोग आजादी के संघर्ष एवम लोकतंत्र के महत्व को सही ढंग से परिचित नहीं है। बात को आजाद कराना इतना आसान नहीं था जितना कुछ लोग समझते है।सच देश को अंग्रेजों की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए जहां एक ओर राजा महाराजा के दौर में कई स्वतंत्रता सैनानियों ने 1857 ई की क्रांति, आजाद भारत का सपना समय के साथ साथ प्रबल रूप ले चुका था , भगत सिंह ,राज गुरु,सुखदेव जैसे वीरों को फांसी सुनकर सभी के दिलों में उफान आ जाता है, जिन्होंने आजादी की मशाल जलाएं रखी ,हम उन वीर सपूतों के साथ अपनी उन वीरांगनाओं को भी नही भूल सकते जिन्होने जरा भी चिंता किए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रखा।जैसे झांसी की रानी, दुर्गावती,सुचेता कृपलानी, विजय लक्ष्मी पंडित ,जो बाद में स्वतंत्र भारत की पहली महिला मंत्री के साथ साथ सयुक्त राष्ट्र संघ की पहली राष्ट्र अध्यक्ष और फिर स्वतंत्र भारत की पहली राजदूत भी बनी।  आज कहना अनुचित नहीं होगा कि हम सभी का सौभाग्य  है कि हम भारत के इन ऐतिहासिक काल को देख पा रहे है।             

अतः हम आज इन सभी सपूतों को नमन करते हुए उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

आइए एक शपथ लेते है।   

    न रखा है , न रखेंगे विदेशी चीजों से वास्ता।

  गर लिया है अपना, तो देंगे छोड़ वो रास्ता।

जय हिंद ,जय भारत।

 

अंजनी अग्रवाल 'ओजस्वी '

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश

 

  

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