पुराने जमाने में लिफाफे में बंद कुछ अल्फाज होते थे,
जिन्हें पढ़कर हम सकुन पाते थे।
मां भाई बहन मौसी बुआ चाचा,
ना जाने कितने रिश्ते नाते निभाते थे।
जब भी डाकिये को देख हम खुश हो जाते थे,
एक वक्त ऐसा भी आता था जब प्रियतमा का प्रेम पत्र आता था।
और हमारी आँखे शर्म से झुक जाती थी,
मत पूछो दोस्तों वह आलम कैसा होता था,
सोच सोच के दिल हंसता और रोता था।
तकिए के नीचे प्रेम पत्र छुपाना और रात भर पढ़ना,
पढ़ पढ़ कर मुस्कुराना, याद आता है वह बीता हुआ जमाना।
अब चिट्ठी की जगह ले ली है मोबाइल ने ,
यह चिट्ठी से फास्ट करता है काम।
दूर बैठे ही दिखा देता है क्या कर रहे हैं आप।
लेकिन प्यार का वो एहसास नहीं दे पाता है,
जो एहसास एक छोटी सी चिठ्ठी दे जाती थी।
जरा सी अनबन हुई और डिलीट हो गई सब यादें।
जबकि चिट्ठी में लिखी हुई यादों को कोई मिटा नहीं पाता था,
कितनी बार इनसे फिर से रिश्ता जुड़ जाता था।
काश लौट आए फिर से वह गुजरा हुआ जमाना,
जिन यादों को हम संजोते थे एक लिफाफे में।
सच में कितना प्यारा लफ्जों का खेल था,
जो चिठ्ठी के माध्यम से सबको बांधे रखता था।
नीतू रवि गर्ग
चरथावल, मुजफ्फरनगर
उत्तर प्रदेश