अंजन मसि से लिखूं मैं पाती

अरुणिता
द्वारा -
0

 


अंजन मसि से लिखूं मैं पाती,

तुम बिन मन रुदन करता बाती,

आ जाओ जल्दी मेरे प्रियवर साथी,

तुम बिन सूनी हो गई मेरी राती।

 

हृदयतल में बसी है तुम्हारी स्मृति,

तुम नहीं तो याद करती तुम्हारी उक्ति,

विरह की अग्नि में जलती मेरी रात्रि,

अंजन मसि से लिखूं मैं पाती।

 

सांझ सवेरे तुमको पुकारूं,

तुम बिन हो गई मैं ऐसी,

जैसे दिया बिन बाती,

अंजन मसि से लिखूं मैं पाती।

 

तुम बिन बीत गई सावन यामिनी,

सखियां भी तुम बिन ना लुभाती,

तुम बिन सांसे भी हो गई अधूरी,

आ जाओ जल्दी मेरे प्रियवर साथी,

अंजन मसि से लिखूं मैं पाती।

 

नीतू रवि गर्ग

चरथावल, मुजफ्फरनगर (उत्तरप्रदेश)

 

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn more
Ok, Go it!