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वैदिक संस्कृति

 


चाहा भारत की संस्कृति ने, सदा ही विश्व का हो कल्याण ।

विश्व संविस्कृति है  वास्तव में,  धरती  वेद की कीर्तिमान। 

जन्में विश्व में सभी प्राणी  ही, मूल रूप  में तो थे  एक ,

रंग- रूप  में  खान पान  में, वेश - भूषा  में बने अनेक।

चार बेटे हों  एक बाप  के, अलग अलग सब  के स्वभाव ,

ऐसा पनपा  भाव  पृथ्वी पर,वर्ण जाति  को मन में टेक ।

पुरातत्व  इतिहास  खोज  में,  यही  हमें  होता  है भान ,

विश्व  संस्कृति है  वास्तव में,  धरती  वेद की कीर्तिमान। 

भारत कभी निभाता था, भूमिका विश्व की था   सिरमोर ,

भाषा एक थी बहुत देशों की, निष्ठावान  थे धर्म की और ।   

सभी एक  थे, ध्यान सदा था, सच्चाई पर नित्य चलना,

जीवन में  चाहे कितनी भी,कठिनाइयां  आजायें घोर

चक्रवर्ती साम्राज्य चला था ,तब अपनी भूमि को जान -

विश्व संस्कृति है वास्तव में धरती वेद  की कीर्तिमान।

भारत के सब  समर्थ ऋषिगण,करते  रहे धर्म-प्रचार,

शक्ति  और प्रयोग  शस्त्र का,देते थे ज्ञान  भण्डार.

वीर पुरुष इस धरती पर,बलवान  और  थे शस्त्रधारी,

ज्ञान कर्म और रहन- सहन में, रहे समर्थ आचार विचार।

विश्व संघ की स्थापना करके, फूंका विश्व में शान्ति-गान ,

विश्व  संस्कृति है वास्तव में, धरती वेद  की  कीर्तिमान।

 कालान्तर  में धीरे- धीरे, स्वार्थ परायण हो गए थे लोग,

भेद- भाव और उँच- नीच ,लग गए सबके मन में रोग , 

भौगोलिक ऐतिहासिक कारण,परिवर्तन आया सबके मन में,

करने लग गए सभी विश्व में, भेद वर्ण- जाति उपयोग।   

मूल उद्गम  संस्कृति -भारती,इसका सब को भी है भान, 

विश्व  संस्कृति है वास्तव में,  धरती वेद की कीर्तिमान ।

बड़ी बात होगी यदि हम अपनी, शक्ति  को सब पहचानें, 

धर्म संस्कृति योग- ध्यान से,ज्ञान विज्ञान को हम जानें ।

विश्व के लोगों को हम सब दें, भ्रातृ-प्रेम का ही सन्देश,

बांधें  विश्व को  एक सूत्र में,विश्व- एकता  को  जानें । 

पनपे नहीं उदंडता किसी में, और कभी न हो अभिमान,

विश्व  संस्कृति है वास्तव में  धरती वेद की कीर्तिमान।

 

डॉ० केवलकृष्ण पाठक

- सम्पादक रवींद्र ज्योति मासिक ,343/19,आनंद निवास,

 गीता कालोनी ,जींद 126102 (हरियाणा ) मोब.9518682355