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विकास का जन्म तो हुआ है

 


कभी कभी ही गांव आ पाता हूं

लगन के दिनों में ही

खासकर गोतिया के यहां

शादी के निमंत्रणों में ही.

 

पिछले साल आया तो सड़क चक चक थी

अलकतरे और कंक्रीट से मशीन द्वारा

बनाया गया सपाट सड़क

दुलहीन बाजार से एक-डेढ़ किलोमीटर

जाने में पंद्रह से बीस मिनट लग जाते थे

पर अब पता भी नहीं चलता

घर के दरवाजे तक पहुंचते

इस मामले में सरकार की कामयाबी

सकारात्मक दिखती है.

बिजली भी पीछे नहीं है

रात्रि विश्राम में गांव के लोगों से

पता चला-

बिजली भी रात भर रहती है.

 

सड़क और बिजली की

सपनों सा चीर प्रतीक्षित सुविधा

निस्संदेह लोगों को प्रभावित करता है.

गांव में पक्के और फ्लैट नुमा घर

विभिन्न रंगों में चमकते घर

दोपहिये-चारपहिये से शोभित घर

लोग कई प्रकार के

जीने का साधन विकसित किया है.

सबकुछ पैसे से उपलब्ध

दूध,सब्जी,दवा, कपड़े

दैनिक उपयोग की दुकानें

सब उपलब्ध

गांव बाजारीकरण की ओर

चल चुकी है.

 

हर घर शौचालय अभियान

से गांव के सरहद की गंदगी

में भारी कमी आई है .

अब स्वच्छता कार्यक्रम

जन-जन को भायी है

पर शिक्षा और स्वास्थ्य

अभी भी सुधर नहीं पाई है.

विकास का जन्म हुआ तो है

लेकिन विकसित लक्ष्य हेतु

अभी पोषित, पल्लवित करने की

बहुत आवश्यकता है .

ललन प्रसाद सिंह

वसंत कुंज, नई दिल्ली-७०