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नवगीत

 

 खिड़की पर

 बैठा है बचपन

 नजरें सड़कों पर।  

सुबह के निकले

मम्मी-डैडी

लौटें सांझ पहर। 

 

ब्रेड-बटर का

किया नाश्ता

बाई लंच बनाती।

भूख लगे तो

दूध रखा है

मम्मी कह कर जाती। 

सिर्फ रात को

साथ बैठकर

करते संग डिनर।

 

मोबाइल है

साथी- भैया

टीवी संग रहना। 

दिन भर आंसू

आते-जाते

सबको ही सहना। 

इकलौता है वारिस

रहता घर पर

दिन-दिन भर।

 

किड्स गार्डन

बंद हो गये

भूले सभी पढ़ाई।

बाबा दादी

 नानी को भी

मेरी सुध न आई।

बैठ अकेला

मन की बातें

किससे कहे कुंअर।

डॉ0 मुकेश अनुरागी

शिवपुरी  , मध्यप्रदेश