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परहित को यारों ने दिया बिसार

 


अपनों ने अपनों को धोखा दिया,

अपनों ने रखा अपना ही ध्यान ।

अपनों के अपने चक्कर में ही,

 अपनों का हो गया काम तमाम।

 

अपनों का हो गया काम तमाम,

 नाम पर लग गया बड़ा बट्टा ।

अपनों की करनी से अपनों का,

 मन हो गया है एकदम खट्टा।

 

खट्टा मन तो अब इतना हुआ,

छंट गयी सदियों की मिठास।

निकल गया दिल दिमाग से,

जो रहता था मन में विश्वास।।

 

अपने ही हित के वशीभूत हो,

परहित को यारों ने दिया बिसार।

परहित का रखा होता ध्यान,

तो कभी न होती यारों तकरार।

 

तो कभी न होती यारों तकरार,

रार ऐसी न जमकर ठनती ।

अलग रास्ते अपने अपने न होते,

न नयी डगर कभी भी बनती।

 

नयी डगर पर नये जोश से,

लेकर चलिए अपनों को साथ।

हरी खड़ा हर्षित होकर संग,

 सफलता चूमेंगी आपका माथ।।

      - हरी राम यादव

        सूबेदार मेजर (से०नि०)

लखनऊ, उत्तर प्रदेश