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सरकारी बाबू दीनू

 


               साहब ने उसे ऑफिस में सबसे अच्छी कमाऊ सीट दी ।जिस पर हमेशा लक्ष्मी की कृपा बनी रहती थी। दीनू ने सरकारी नौकरी मिलने की उम्मीद सपने में भी करना छोड़ दिया था।  आज उसकी साधना साहब की  मेहरबानी से पूरी हो गई।

          दीनू धन्य हो गया। उसका रोम-रोम साहब का  ऋणी हो गया ।

             अब दीनू मास्साब स्वमेव ही  धीरे-धीरे दीनदयाल  बाबू जी बनते चले  गए। एक ही झटके में दीनू की मार्केट वैल्यू बढ़ गई ।सोशल स्टेटस यहां से वहां पहुंच गया।

               दीनू के  दीनदयाल बाबूजी बनने की खबर जंगल में आग की तरह यौवनाओं के पिता तक फैल गई। वे भी अब सरकारी जंवाई को अपना जंवाई बनाने को लालायित हो उठे। अपनी पुत्री का हाथ सरकारी महकमें के बाबू को  देकर वे अपनी पुत्री के भविष्य की चिंता से मुक्त होना चाहते थे।

            जैसे-जैसे दीनदयाल ऑफिस की कार्य पद्धति समझता जाता, वैसे वैसे अपनी कीमत भी  बढ़ाता जाता। शून्य से शुरू होने वाले दीनदयाल बाबूजी में कुछ ही महीनों में आमूलचूल परिवर्तन आ गया। पेंट की कमर और बुशर्ट का सीना बढ़ गया। सब कपड़े टाइट हो गए। चेहरे पर झुर्रियों का स्थान एक अनोखी चमक ने ले लिया ।जो दोस्त पहले  कन्नी काट कर निकल जाया करते थे। अब  रुक कर  दीनू से  हाथ मिलाकर जाते हैं।

          जिस तेजी से सुंदरियों का कपड़ा उतारने का ग्राफ बढ़ रहा है ।उसी तेजी से दीनदयाल बाबूजी के स्टेटस का ग्राफ बढ़ने लगा था ।सुंदरियों के साथ-साथ दहेज भी देने वाले सुंदरियों के पिता उनके लिए तैयार बैठे थे। बस हां भरने की देर थी।

         दीनदयाल बाबूजी सुंदरियों का इंटरव्यू पर इंटरव्यू लिए जा रहे थे। वे अपनी जीवन संगिनी में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं चाहते थे। लंबाई, चौड़ाई ,मोटाई, चेस्ट, ब्रेस्ट इत्यादि का बारीक मुआयना जारी था।

            पहले जहां दर्शन करने के लाले पड़ गए थे। अब पूरी बेहयाई से इस काम को अंजाम दिए हुए थे। वह भी सुंदरियों के पिताओं की मर्जी से।

           आखिर दीनदयाल सरकारी महकमे के कुंवारे बाबू थे।

         आर के साहब की पूरी निगाह दीनदयाल पर थी। उस में आए बदलाव को वे  बहुत अच्छी तरह देख रहे थे। बढ़ते स्टेटस और ऊपरी आमदनी को दीनू पचा नहीं पा रहा था । उस पर मदहोशी सवार हो गई। मदहोशी में लापरवाही होना स्वाभाविक था।एक दिन जब चार- छह पुलिसकर्मियों के साथ धड़ाधड़ एक अफसर ने उसके कमरे में प्रवेश किया और दीनदयाल द्वारा कुछ ही समय पूर्व वसूले 500 को उसकी जेब से सबके सामने निकाल, पंचनामा तैयार किया तो सारी मदहोशी काफूर हो गई । लगा एक साथ किसी ने ऊपर से नीचे धक्का दे दिया।और वह नीचे गिर पड़ा।

         सबको एक ही लाठी से हांकने की कीमत चुकानी पड़ गई। गच्चा खा गए और पकड़े गए। जैसे तैसे साहब के प्रयासों से जमानत तो हो गई। लेकिन दो दिन में ही सारा संसार सूना हो गया।

             घर पर लोगों की लाइन लगना तो दूर संवेदना के दो शब्द प्रगट करने वालों तक का अकाल पड़ गया ।जीवनसंगिनी बनाने के लिए कहां तो इन्टरव्यू पर इंटरव्यू लिए जा रहे थे और कहां खुद ही इंटरव्यू हो गए ।

 

हनुमान मुक्त

मुक्तायन, 93, कांति नगर

मुख्य डाकघर के पीछे, गंगापुर सिटी-322201

जिला- सवाई माधोपुर (राजस्थान)