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ढूध का तालाब

 


          मैंने बचपन में एक कहानी सुनी थी एक बार एक राजा के मन में आया कि हमारे राज्य में संपन्नता तो है परंतु खाने में पोषक तत्वों का अभाव रहता है क्योंकि कुछ लोगों के घर खाने का लाला और कुछ के यहां भरपूर है वह अच्छी तरह जानता था कि खाने में दूध सम्पूर्ण पोषक आहार होता है बच्चे,बूढ़े,जवान सभी के लिए ज़रूरी है,जो सभी लोगों को नहीं उपलब्ध हो पा रहा था । कुछ गरीब लोगों के पास पोष्टिक भोजन के अभाव से बच्चे व सामान्य जन अस्वथ्य तथा बीमारियों के चपेट में आ रहे थे। कुछ ऐसे भी लोग थे जिनके घर न खाना ,न ही दूध ,बच्चे भूखे मर रहे थे उसके मन में आया । वह अपने मंत्रियों से सलाह किया कि कुुछ ऐसा  जाए कि इन गरीबों का भला हो सके और हमारे राज्य में कोई भी व्यक्ति बिना दूध का न रहे क्योंकि सबके स्वास्थ्य लिए दूध जरूरी है । मंत्रियों से मंत्रणा करने के बाद वह इस निष्कर्ष पहुंचा कि हमारे  राज्य में एक दूध का तालाब होना चाहिए जिसमें से आवश्यकतानुसार लोग दूध ले जाएंगे और तब हमारा राज्य खुशहाल हो जाएगा। तदुपरांत  राजा ने तालाब खुदवाया और पूरे राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि सभी लोग जिनके घर में दूध होता है ,अपने घर से दूध ले जाकर उस तालाब में डालेंगे जिससे यह तालाब दूध से भर जाय। यह काम सभी लोगों को रात में करना है जिससे यह पता ना चले कि किसने ज्यादा दूध डाला है किसने कम डाला लेकिन डालना सबको है ,जिनके घर में दूध होता है। घोषणा हो गई अब बारी आई दूध डालने की । उसमें एक परिवार की कहानी सुनाता हूं जिसमें आपस में पति और पत्नी बात करते हैं कि पूरा राज्य तो दूध डाल ही रहा है अगर हम अकेले उसमें एक मग/एक लीटर पानी डाल देंगे तो क्या पता चलेगा कि इसमें कोई पानी डाला भी होगा वह पानी भी दूध में मिलकर दूध हो जायेगा और उन्होंने वैसा ही किया अगले दिन सुबह राजा बड़े खुशी खुशी तालाब का निरीक्षण करने गया और उसके मन में यह था कि हमारे राज्य में दूध का तालाब लहरा रहा होगा और यह बहुत बड़ा काम होगा। लेकिन जब वह सुबह तालाब पर पहुंचा तो देखा तालाब में दूध की जगह पानी लहरा रहा है ।वह देखकर दंग रह गया कि ऐसा क्या हुआ तालाब में दूध की जगह पानी है। यह तो कहानी है परंतु कहानी का मर्म कुछ और है जो वर्तमान में हम सब पर भी लागू होता है।

           जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि उस दंपत्ति की तरह राज्य का हर सदस्य सोच लिया कि मेरे अकेले पानी डालने से क्या होगा बाकी सब लोग दूध तो डालेंगे ही और सब तालाब में पानी ही डाल आए और तालाब में दूध की जगह पानी लहरा रहा था ऐसी ही घटना हमारे रोज के जीवन में घटती है जब किसी अच्छे विचार या काम को यह सोच कर टाल देते हैं या नही करते हैं या हम गलत करते हैं,अच्छा काम करने/ सोचने की अपेक्षा दूसरों से करते हैं। तो हम सभी अपने कर्तव्य ,अपने दायित्व से मुंह मोड़ लेते हैं ।हम अच्छा स्वयं नहीं करना चाहते बल्कि यह दूसरों से अपेक्षा करते हैं कि अगला करेगा और हम थोड़ा बुरे भी रहेंगे, हम नहीं भी करेंगे तो यह दुनिया में क्या परिवर्तन अथवा क्या फर्क पड़ेगा ,तब हम यह भूल जाते हैं कि हम देश/समाज की इकाई हैं, हमसे ही समाज व देश बनता है हमारी ही सोच समाज की सोच बन जाती है, हमारे विकास से समाज का विकास होता है । परंतु कहानी की तरह हमारे इस समाज कि यही मानसिकता है कि सभी दूसरे के कर्तव्य ,दूसरे के दायित्व पर ध्यान तो देते हैं पर अपने अंदर के अवगुणों, अपने कर्तव्य/दायित्व से मुंह मोड़ लेते हैं और ध्यान नहीं देते हैं । अच्छाई करने का कार्य किसी और पर छोड़ देते हैं । यह मान लेते हैं कि अच्छा करने के लिए भगवान जन्म लेंगे, अंबेडकर जन्म लेंगे, गांधी जन्म लेंगे। गांधी और अंबेडकर हमारे आप में से ही निकलते हैं ,बस तब, जब  हमें अपने कर्तव्यों ,अपने दायित्वों का बोध हो जाता है। इच्छा तो सबकी होती है कि दुनिया में शांति हो, दुनिया में सद्भाव हो ,लेकिन यह वैसा ही होगा जैसा हम सब होगें जैसा की ऊपर कहानी में हुआ," पर उपदेश कुशल बहुतेरे "दूसरे को उपदेश देना आसान होता है उन्ही उपदेशों पर चलना कठिन जरूर होता है परंतु असम्भव नहीं होता।            

  आज हम देख रहे हैं सोशल मीडिया पर, तमाम ग्रुप में तमाम तरह के ,विचार तमाम तरह के आदर्श घूम रहे हैं लेकिन उस पर कोई पहल नहीं कर रहा है बस दूसरे के लिए वह फॉरवर्ड कर रहे हैं। दूसरे को ज्ञान बांट रहे हैं लेकिन कभी खुद पर लागू नहीं किया। कभी खुद के लिए उन चीजों पर अमल नहीं किया। सब चाहते हैं चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह हो ,कबीर आए बुद्ध जन्म ले लेकिन हमारे घर में नहीं  बल्कि पड़ोसी के घर में ।यह कब तक चलेगा? हम सब को आगे आना पड़ेगा जो जिस स्तर पर है ,उस स्तर पर काम ,सहयोग करना पड़ेगा ,समाज में अशिक्षा, नशाखोरी ,आपसी मतभेद ,गरीबी, भुखमरी आदि समस्याएं देश, समाज, राज्य/राष्ट्र को आगे नहीं बल्कि पीछे धकेल रही हैं, हमे मिल कर उपर्युक्त समस्याओं को दूर कर ,देश को समावेशी व सतत विकास की ओर आगे ले जाना होगा। हम सबको, एक दुसरे को अपने - अपने दायित्व बोध का संबल देना चाहिए ।

        इस कहानी के माध्यम से हम यही कहना चाहते हैं कि सभी लोग यह सोचते/ चाहते हैं कि अगला करेगा तो ऐसा  सब सोचते हैं तथा कोई करता नहीं ।सामाजिक, आर्थिक विषमता, गरीबी ,अशिक्षा, अशांति आदि देश व समाज की जड़ों को खोखला कर रही हैं। हम सब चाहते हैं कि समाज से अवांछित चीजों को निकाला जाना चाहिए लेकिन अपेक्षा दूसरे से करते हैं हम चाहते हैं कि समाज शिक्षित हो जाए लेकिन हम न करें कोई और करें यह कब तक चलता रहेगा, यही अगर बाबा साहब सोचे होते , महात्मा गांधी तथा बहुत से महापुरुष सोचे होते तो हम सब की हालत क्या होती यह कल्पना से परे है,हम सब लोग जिस स्वतंत्रता , सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं उसके लिए अनगिनत महापुरुषों ने अपने दायित्व बोध से सींचा है।

        इस कहानी से हम सब को कुछ मिले या न मिले पर यह कहानी हम सब के कर्तव्य बोध की ओर संकेत करती है, यह कार्य नैतिकता को समझने में हमारी मदद करती हैं।हालाकि उस वक्त हम कहानी का यह मर्म समझ नहीं पाए थे। परंतु आज जब अध्ययन और अध्यापन में अपने आपको समर्पित किया तब जाकर समझा कि कहानी समाज और देश काल का आइना होने के साथ हमें जीवन की समस्याओं से निजात के लिए रास्ता तैयार करती हैं।हम सब को इस कहानी से सबक लेना चाहिए नहीं तो दूध की जगह पानी ही पानी दिखेगा। अपने देश को विकसित बनाने के लिए अपने- अपने कर्त्तव्य बोध व कार्य नैतिकता के महत्व को समझना होगा।

                                     डॉ. विवेक कुमार समदर्शी   (प्रवक्ता)

                                       राजकीय इण्टर कालेज

                                      अर्जुनपुर गढ़ा, फतेहपुर ।