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शेरू

     


शेरू जो कभी किसी अंजान व्यक्ति को अपने बूढ़े मालिक की घर के बाहर बनी कोठरी के पास देखता था तो भौंक भौंक कर डरा कर वहाँ से उसको जाने को मजबूर कर देता था, लेकिन आज हर आने जाने वाले को अपने अगले दोनों पैरों पर अपना सिर टिकाकर चुपचाप बैठा देख भर रहा था।शेरू को इस तरह गुमसुम चुपचाप बैठा देखकर लोग कह रहे थे, कि इंसान ही नहीं अपने को खोने का दुख इन बेजुबान पशुओं को भी होता है,,देखो शेरू कितना उदास है,, बस कह भर नहीं पा रहा है।

        शेरू के बूढ़े मालिक सरूप का आज स्वर्गवास हो गया था।घर परिवार के लोगों के साथ साथ रिश्तेदार व गाँव के लोग इकट्ठा थे सरूप की कोठरी के बाहर,,बिन बोला शेरू कुत्ता जो अपने मालिक के आस पास ही हर दम रहता था, शायद मालिक के साथ हुई अनहोनी को समझ गया था।इसी लिए कोठरी के सामने थोड़ी दूर पर जमीन पर चुपचाप उदास बैठा था।थोड़ी देर बाद सरूप के परिजन कंधों पर  शव को रखकर अंतिम संस्कार के लिए चल दिए तो शेरू भी पीछे चल दिया।बीच बीच में वह मालिक के शव को कंधों पर लेकर जा रहे लोगों के बीच जा पहुँचता और अपना सिर ऊपर को कर के चलने लगता कि जैसे कह रहा हो मालिक से कि,,मालिक हम भी कंधा देना चाहते हैं लेकिन हम बेजुबान हैं और मजबूर भी।शेरू को इस तरह से करते देख साथ चल रहे लोगों के आँसू छलक आए।आपस में बोले कि देखो आज सरूप का शेरू कितना दुखी है,, बस कुछ कह नहीं पा रहा है बेचारा।

        अंतिम संस्कार करने के बाद सभी घर को बापस चल दिए ,लेकिन अभी भी शेरू थोड़ी दूर बैठा था, कुछ देख रहा था ,शायद कुछ सोच रहा था।गर्दन घुमाकर कभी जलती चिता की ओर देखता तो कभी बापस घर को जाते लोगों की ओर।शायद वह बेजुबान मासूम सोच रहा था कि मालिक अभी यहीं कहीं हैं और वह निकल कर आ जाएंगे और उससे कहेंगे ,,चलो शेरू घर चलते हैं।

       सरूप के अंतिम संस्कार में आए लोग बापस अपने अपने घर उसी शाम को चले गए थे, ।सुबह का समय था,, आज सरूप नहीं उनका बड़ा बेटा शेरू के लिए  रोटी लेकर आया था बोला,,,, शेरू लो रोटी खालो,,आओ रोटी खाओ,,दो तीन बार कहा लेकिन शेरू ने रोटी की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखा रोटी खाना तो दूर।,,शेरू की ओर  देखकर बोला,, शेरू,, बापू अब अपने हाँथों से तुमको रोटी देने कभी नहीं आएंगे ,अब हम लोगों के हाँथों से रोटी लेनी पड़ेगी,और इतना कहकर सुबकने लगा।,,कुछ देर सन्नाटा पसरा रहा, मालिक का बेटा चुपचाप शेरू को देखे जा रहा था,, और शेरू बस उस कोठरी की ओर ,,,,,फिर शेरू उठा और चुपचाप कोठरी के दरबाजे पर गया ।इधर उधर देखा और फिर बापस रोटी के पास आया,और रोटी मुँह में दबाकर उठाई और उसे दरबाजे की चौखट के पास जाकर रख दिया,। एक बार गर्दन घुमाकर मालिक के बेटे की ओर देखा ,,और फिर रोटी मुँह में दबायी और फिर चल दिया उस ओर, जिस ओर लोग मालिक को कंधों पर उठाकर लेकर चले थे।मालिक का बेटा खड़ा खड़ा चुपचाप अपनी  भीगी पलकों से देख रहा था।

         सुबह से शाम हो गई थी, लेकिन शेरू अभी तक बापस दरबाजे पर नहीं आया था। यह देखकर,, शेरू,, शेरू कह कर घर के लोग शेरू को बुला रहे थे लेकिन शेरू नहीं आ रहा था बुलाने पर भी,,,इस तरह बार बार बुलाए जा रहे थे सब। शेरू शायद  अंतिम बार मालिक के घर से रोटी का टुकड़ा मुँह में दबाकर सदा के लिए कहीं दूर कहीं दूर चला गया था,अपने साथ मालिक सरूप के स्नेह भरी यादों को लेकर।सरूप के घर जैसे मातम के साथ एक और मातम आ गया था,,, दोनों बेटे कह रहे थे कि ,,बापू के साथ साथ,, शेरू हम तुमको भी कभी न भुला सकेंगे,, जब जब बापू को याद करेंगे तो, तू अनायास यादों में उतर आएगा,,, काश,,, शेरू तुम न गए होते छोड़कर हम सबको, बापू तो चले ही गए छोड़कर।

 

रामबाबू शुक्ला

पुवायां-शाहजहांपुर

उत्तर प्रदेश