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फुलवारी


दरवाज़ा खोलते ही ठंडी बारीश की कुछ बूँदें उस के मुँह पर गिरी,गरमी में पानी पड़ने पर ठंडक से मौसम बहुत ही ख़ुशगवार हो गया था ।बालकनी  में लगे सभी पौधे पानी की बूँदों में नहा नयी ताजगी से भर उठे थे।

लीली के पौधे पर रात भर पड़ती बारीश की बूँदें उस में प्राण भर गयी थी पूरा गमला ,गुलाबी फूलों से भर गया था ,उसके गुलाबी फूल ,ठंडी हवा में झूम रहे थे जैसे ख़ुशी से हँस रहे हो। उन को देख उस का मुस्कुराता चेहरा उस के सामने आ गया था जैसे कह रहा हो ।

 "देखो माँ इस पर अब की कितने फूल खिले है।"उसे याद आया जब वह लीली के नन्हे पौधे को घर लाया था।चहकते हुए उसने कहा था ।

"माँ  आप कहती थी ना पेड़ ,पौधों में प्राण होते है इनको नहीं तोड़ना चाहिए ,आज स्कूल में भी हमारी मैडम ने बताया पेड़ हमें ओक्सीजन देते है ,हमारे जीवन के रक्षक है।"

"हा बेटा मैंम ने ठीक बताया ये हमें फल ,फूल अनेक उपयोगी चीज़ें देते है हम मानव स्वार्थी है जो उनको काट देते है पर्यावरण की सुरक्षा के लिए इन का होना बहुत ज़रूरी है।"

उसने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था ।

जैसे उन से  उसकी दोस्ती हो चली थी अपने जेब ख़र्च से पैसे बचा पौधें ले आता । बालकनी  अनेंक पौधों से भर गयी पढ़ाई से समय मिलने पर उन में उस के संग पानी देता उन के पत्तों और फूलों को ध्यान से देखता,पहली बार जब लीली पर फूल आये तो कितना चहकता रहा था ।आज भी उसे याद है उसका वो चहकता ,हँसता चेहरा

"अरे पानी में भीग क्यों रही हो.....

आज चाय नहीं मिलेगी क्या?"

तभी उस के पति सुरेश ने आवाज़ दी ।

"देखो सुरेश उस का मुस्कुराता चेहरा,इन पौधों में से  कैसे झाँक रहा है वो इनके साथ कैसे हँस रहा है ये सच है कि उसने देश के लिए जान दे दी पर  वो आज भी इन के रूप में हमारे साथ है।"भरी आँखों से उस के  मुँह से सिसकियाँ निकल पड़ी ।

बबिता कंसल

दिल्ली