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ग़ज़ल

 


1.

आज़ बिगड़े हैं जो मेरे हालात

 तो कल फिर सुधर भी जाएंगेl

 

 जो लोग मेरी नजरों से गिर  गए है

वो मेरी निगाह में फिर चढ़ ना पाएंगेl

 

जिस दिन बरसेगी जब ईमान की बारिश

दाग दामन पे उनके बे हिसाब उभर आयेगेl

 

 हम अकेले ही सही पर इंसान लगते हैं

लोग साथ आ गए तो भीड़ कहलाएंगे।

 

हां में हां मिलाने का हुनर सीख लूं गर

 फिर दोस्त मेरे  भी हजारों बन जायेगे।

 

 दूर से पूछोगे  कैफियत मेरी  तो मुस्कुरा देगे

झांक कर देखो आंखो  में अश्क नज़र आयेंगे।

 2.

मिटाने के हमको जीतने भी  प्रयास हुए     

हम निखर कर और भी लाज़वाब हुए   

 

इतना  कहा लोगों ने मेरे बारे में      

हम तो किस्सों की पूरी किताब हुए।          

 

 बड़े सकून में थे  मेरी नाकामियों से

बेचैन  हो गए जब  हम कामयाब हुए

 

हम  थे  घर का छोटा सा दिया

लोग इतना जले की हम आफताब हुए

 

संवर कर उभरा फिर  ऐसा  क़िरदार  मेरा

 मुझे गढ़ने में  जब सब सुनार हुए

 

मेरी नाव को डुबाने की जिद में

दरिया के किनारे भी अब मजधार हुए

 

हर बार हर वार  सहने पर भी

जानें क्यूं मौत  को ना स्वीकार हुए

 

प्रज्ञा पाण्डेय मनु

वापी गुजरात