रिया को इटावा से कानपुर जाना था ट्रेन से। रात ग्यारह बजे की ट्रेन थी और वह अकेली। इधर उधर नजरें घुमाकर देखा तो सब प्रतीक्षा में ऊंघ रहे थे तो कुछ सामान का तकिया बना सो रहे थे। कुछ अपने फोन में व्यस्त। छोटा स्टेशन और भीड़भाड़ कम। रिया को अकेले होने के कारण बेचैनी सी थी। कुछ गरीबों का आशियाना प्लेटफार्म। कंबल में लिपटे गरीब लोग।
तभी रिया की दृष्टि एक तकरीबन सत्तर साल की वृद्धा पर गयी जिसके पास फटा हुआ एक कंबल था। अधिक ठंड की वजह से शायद वह सो नहीं पा रही थी।पास होने के कारण रिया ने पूछा-"अम्मा आप अपने घर नहीं रहती।" " बेटी मेरा बेटा लेने आएगा" चेहरे पर चमक लाते हुए वृद्धा ने कहा। रिया की दिलचस्पी बढ़ी।" कब आएगा आपका बेटा?" " छः महीने हो गए। मुझे हरिद्वार घुमाने लेकर आया था। यहां बैठाकर कह गया था कि वह चाय लेकर आता है ।"
अम्मा की बात सुनकर हृदय पसीज गया और वह समझ गई कि उनका बेटा धोखे से यहां छोड़कर भाग गया है।" अम्मा, अगर वह नहीं आया तो।" " नहीं बेटी।वह जरूर आएगा। मैं यहां उसका यही इन्तजार करती हूं कि पता नहीं वह कब आ जाए।" रिया ने अपने मामा को फोन किया जो बेसहारा लोगों के लिए अपना घर नामक संस्था चलाते हैं। हुलिया बताया और अम्मा को ले जाने के लिए कहा।" अम्मा, आपका बेटे से मिलाने अंकल आएंगे।आप उनके साथ चली जाना।" अम्मा के बहते आंसुओं में बेटे के प्रति वात्सल्य उमड रहा था और रिया कलयुगी बेटे के विषय में सोच रही थी कि उसकी ट्रेन आ गई। जाड़े की उस रात में एक अम्मा का सहारा बनकर रिया संतुष्ट थी।
अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश