जीवन की बैलेंस शीट में
मैंने जब जब
देखा प्रोफिट ।
दुख का ही क्रैडिट हो पाया
मुझको दिखता
सुख का डेबिट।
वादों के सिक्के
दिखते हैं , लेनदेन के
चलन से बाहर।
सांसों की जो रही
बची है , पूंजी भी
दिखती फिर कमतर।
सारे गुणा भाग बेमानी
जीरो जीरो रहा
डिपोजिट।
जितना जतन किया
मिल जाए, उतना ही
बढ़ता है घाटा।
अपनेपन से ले उधार
फिर,जांचा परखा
थोड़ा पाटा।
बढ़ा लोन और किश्त
अपरिमित, नहीं हुई
थी मुझसे क्रेडिट।
सीए ने भी कोशिश करके
कई कई रस्ते
बतलाये।
आपाधापी में जा उलझे
कोई जतन समझ
नहीं आये।
बेहिसाब ही रही अधूरी
शीट हमारी
सदा अपोजिट।
सभी लायबिलिटी पूरी की
किंतु असेट्स भी
रहे अधूरे।
इतने खर्च बढ़े जीवन में
हो न पाये फिर
कभी ये पूरे।
ऑडिटिंग से फल ये
निकला,लॉस गेन
सब ब्रेकिट ब्रेकिट।
डॉ0 मुकेश अनुरागी
शिवपुरी , मध्यप्रदेश