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क्यों कोई याद आता है ?



प्रभात के प्रथम प्रहर में ,

सोते जागते इस शहर में,

चिड़िया जब चहचहाती

क्यों कोई याद आता है ?

दोपहरी की अलसाई में ,

नितांत एकल तन्हाई में,

प्रतीक्षारत परछाई देख

क्यों कोई याद आता है ?

 उड़ती भटकी अलकों में,

झुकी  शर्मीली पलकों में ,

भीड़ भरी सड़क देखकर

क्यों कोई याद आता है ?

सांध्य समय की शांति में,

निस्तेज रवि की भ्रांति में ,

मंदिर में जलता दीप देख

क्यों कोई याद आता है?

प्रभु के पावन द्वार पर ,

मधुकरी के उपहार पर ,

व्यर्थ लूटने के संशय पर

क्यों कोई याद आता है ?

सोती रात के जागरण में,

तर्कों के शाब्दिक रण में ,

हार जीत दरकिनार करके

क्यों कोई याद आता है ?

क्षमा भाव से आराधन में,

पश्चाताप भरे शीर्षासन में ,

प्रार्थना को उठते हाथ देख

क्यों कोई याद आता है ?

रिश्तो से पहचाना चेहरा,

जन्मों से अनजाना चेहरा,

साक्षात्कार की पहल पर

क्यों कोई याद आता है?

व्यर्थ तपस्या जन्मों की ,

वृथा उपासना कर्मों की ,

संकल्प की विफलता पर

क्यों कोई याद आता है ?

रमेश चन्द्र शर्मा

    16 कृष्णा नगर, इंदौर

मध्यप्रदेश