खुशी में समय कैसे निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। रामखिलावन उर्फ आर के साहब का समय भी बहुत अच्छे ढंग से गुजर रहा था ।आजकल उनकी गिनती अच्छे अफसरों में होने लगी थी। अपनी अफसर बिरादरी में उनकी अच्छी पोजीशन थी।
अच्छे खासे परिवार में उनकी शादी हो गई। वे पापा भी बन गए । सात साल का उनके एक बेटा है।
सिंह साहब जैसे गुरु के मार्गदर्शन और अपनी कार्यशैली से उनके पास अपना मकान और बैंक बैलेंस भी बन गया है।
उनकी ही जाति बिरादरी का एक युवक है दीनदयाल।
अपने बूते अनुसार पढ़ने लिखने के बावजूद , काफी कोशिश करने के बाद भी जब किसी सरकारी महकमे में अपनी जगह ढूंढने में वह नाकामयाब रहा तो उसने असर-कारी स्कूल में देश का भविष्य निर्माता बनाने का कार्य शुरू कर दिया ।
असर-कारी स्कूल मास्टर की तनख्वाह असर-दायक नहीं होने से दीनदयाल स्कूल समय से पहले और बाद में होम ट्यूशन कर अपना गुजारा करने लगा।
घर में उसकी मां के सिवाय कोई नहीं था। पिता का देहांत बहुत पहले बचपन में ही हो चुका था।
दीनदयाल की उम्र तीस साल के पार हो गई लेकिन क्या मजाल जो कोई नवयौवना का पिता अपनी पुत्री का हाथ उनके हाथों में देने का मानस बनाता। बेचारा दीनदयाल इधर-उधर ताक-झांक कर अपना काम चला रहा था। ताकते-झांकते उसकी आंखों को भी अब शर्म आने लगी थी। पर बेचारा क्या करता?
यार, दोस्त जब अपने बीवी बच्चों के साथ हंसते बतियाते निकलते तो उसके दिल पर सांप लोट जाता। मन ही मन उसे अपनी किस्मत पर रोना आता।
इसी मोहल्ले का होने के कारण सब उसे दीनू ही कह कर पुकारते। प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के कारण अब वह दीनू से दीनू मास्साब बन चुका था।
दीनू का पढ़ाने लिखाने में मन कितना लगता । यह तो नहीं पता लेकिन उसके द्वारा घर पर पढ़ने वाले बच्चे और उनके मां-बाप उससे बहुत प्यार करते।
वह भी घर पर बच्चों को पढ़ाने के अलावा सब कुछ करता। बच्चों को पढ़ाई का सामान लाने से लेकर, घर
जैसे तैसे दीनू अपना गुजर-बसर कर रहा था।
पिछले कुछ दिनों से वह आर के सर के यहां भी उनके नौनिहाल को घर पर ट्यूशन पढ़ाने का कार्य करने लगा था। अन्य ट्यूशन वालों के घर पर वह एक घंटे से अधिक समय खराब नहीं करता लेकिन आरके साहब की लोकप्रियता और कार्यशैली से प्रभावित होकर वहां वह दो घंटे तक खराब करने में कोताही नहीं बरतता। उसका मानना था कि यह इन्वेस्टमेंट है जिसका फल उसे भविष्य में अवश्य मिलेगा।
दीनू यहां साहब और साहिबा के पर्सनल कामों को भी पूरी मुस्तैदी से मन लगाकर पूरा करता ।
आरके साहब, साहिबा और उनका नौनिहाल दीनू की कर्तव्य निष्ठा, वफादारी और मेहनत से खुश थे। साहब को दीनू की दयनीय दशा पर काफी दया आती ,जिसे दीनू अच्छी तरह जानता था। अपनी दयनीय दशा को अच्छी दशा में बदलने के लिए वह मनोरथ सिद्ध वृक्ष पर जाकर मनोकामना का धागा भी बांध आया था।
मनोरथ सिद्ध वृक्ष की कृपा उस पर आई या उसकी मेहनत, कर्तव्य निष्ठा और वफादारी ने अपना रंग दिखाया कि एक दिन शाम को साहब, दीनू पर कुछ अधिक मेहरबान नजर आए।
उन्होंने दीनू को एक अखबार थमाते हुए कहा," दीनू! इस अखबार में हमारे महकमे में बाबू की जगह के लिए विज्ञप्ति छपी है। तुम फॉर्म भर दो।"
दीनू ने अखबार को इधर-उधर पलटा। बोला," साहब इस नाम का अखबार तो आज पहली बार देखा है ।"
सुनकर साहब के चेहरे पर एक रहस्यमई मुस्कान उभर आई। बोले," जब यह बाजार में आएगा ही नहीं तो तुम देखोगे कैसे? इसका प्रसारण हम जैसे कुछ एक अधिकारियों तक ही सीमित है। तुम्हें आम खाने हैं या पेड़ गिनने। जैसा कहा है, वैसा करो ।कल शाम तक फॉर्म तैयार कर दे जाना। अत्यंत गोपनीय काम है। किसी से कुछ कहना मत।"
दीनू को आम खाने थे। साहब के यहां ट्यूशन के काम को और भी निष्ठा से करने का मन ही मन निर्णय किया ।साथ ही साहब के निर्देशानुसार अपना भविष्य संवारने का भी। उनके कहे अनुसार फॉर्म तैयार कर गोपनीय ढंग से साहब को दे आया।
कुछ दिनों बाद साहब ने परीक्षा में बैठने का बुलावा पत्र दीनू को थमा दिया और कुछ गोपनीय निर्देशों के साथ ठीक समय पर परीक्षा स्थल पर पहुंचने का आदेश भी ।
दीनू ने साहब के आदेशों की अक्षरशः पालना की।
सभी काम ठीक-ठाक ढंग से संपन्न हो गया। परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों की कुंजी ,पेपर मिलने के आधे घंटे बाद ही दीनू के पास पहुंच गई और दीनू परीक्षा में पास हो गया ।
अब आ गई टाइप टेस्ट की बारी ।परीक्षा तो टीप टाप कर पास कर ली लेकिन अब टाइप टेस्ट कैसे पास करेगा दीनू। उसे तो टाइप करने की एबीसीडी तक नहीं आती फिर वह टाइप की स्पीड में कैसे पास होगा। मन ही मन वह सोच रहा था ।अपना संशय उसने साहब के समक्ष रखा।
साहब ने उसे मस्त रहने को कहा ।
आर के साहब अब खुद अलादीन के चिराग बन चुके थे। जिनके पास हर समस्या का हल था। पी टीआई सिंह साहब का उन पर पूरा असर था ।
सिंह साहब की उन पर पूरी कृपा दृष्टि थी ।वे अपने गुरु सिंह साहब से पूरा गुरु ज्ञान ले चुके थे।
उन्होंने टाइप टेस्ट वाले दिन दीनू को दिन भर उनके घर पर ही रहने का निर्देश दे दिया कि वह आज घर से बिल्कुल ना निकले। अपने स्कूल से भी आज की छुट्टी ले ले।
दीनू, साहब के गोरखधंधे के बारे में सोचता उससे पहले ही उसके दिमाग में पेड़ गिनने के बेवकूफी भरे प्रयास की बजाय आम खाने का विचार आ जाता।उसे आम खाने थे।वह सब कुछ साहब के निर्देशानुसार कर रहा था।
टाइप टेस्ट के दिन, दिन भर साहब के घर पर ही रहा ।जो घर का काम वह कर सकता था ।उसने पूरी कर्मठता से किया ।
शाम को उसे छुट्टी मिल गई ।टाइप टेस्ट हो गया ।कुछ दिनों बाद परीक्षा परिणाम आ गया ।दीनू बिना टाइप टेस्ट में बैठे ही टाइप टेस्ट में अच्छे अंको से पास हो गया।
उसे बाद में पता चला कि उसकी टाइप टेस्ट की परीक्षा साहब के ऑफिस में काम करने वाले टाइपिस्ट ने दी थी ।
भगवान ने दीनू की सुन ली। अब वह आर के साहब के ऑफिस में ही सरकारी बाबू बन गया ।
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