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मुख़्तसर ज़िन्दगी

 


विराम लगा दो;
ज़िन्दगी  की बेतहाशा दौड़ती रफ़्तार पर,
कि जमानेभर से राहत नहीं है,
इस मुख़्तसर ज़िन्दगी  को।

राहत के पल ढूँढ़ती ज़िन्दगी ,
गतिशील है ज़िन्दगी  के सफ़र पर,
आज भी तलास जारी है;
सुकून के पलसफों की ज़िन्दगी  को।

आराम की चाहत लेकर,
ज़िन्दगी  दौड़ती, ज़िन्दगी  के रास्तों पर;
सफ़र ने रुकने ही नहीं दिया,
सुकून चाहती मुसाफ़िर ज़िन्दगी  को।

थोड़ी फुर्सत तो दे;
ऐ! कश्मकश से भरी ज़िन्दगी !
तू बड़ी ज़ालिम है;
सताती बहुत है ज़िन्दगी  को।

कुछ पल तो ठहर ज़िन्दगी !
कि तेरे सफ़र की चाल को समझ सकूँ;
तू आजमाती बहुत है,
सफ़र की मुसाफ़िर ज़िन्दगी  को।

 

अनिल कुमार केसरी

भारतीय राजस्थानी

राजस्थान