धरा भी अब त्राहिमाम कर रही
प्रचंड गर्मी से अब ये जल रही
सूर्य का चरम तेज धरा अब न सह रही
विषम स्थिति में धरा विलाप कर
रही ।
जल का दोहन अब अति हुआ
धरा का जल अब पाताल गया
नदियां अब दूषित जल बहा रही
बारिश की आस मन को भरमा रही ।
वर्षा ऋतु भी अब अस्त व्यस्त
हो रही
कृषि सुखा का खूब गरज रही
कहीं बाढ़ की विभीषिका बन रही
कहीं मेघ दिखा कर बूंदों को
तरसा रही ।
अब तो मनुष्य समझो इशारे
प्रकृति की
क्यों व्यर्थ में बुला रहे
रौद्र रूप बदले की
रक्षण करो जो बचा है, धरो मान इस
धरा की
जो बचे बचा लो इस अनुपम भेंट
धरा की ।
मलय कुमार मणि
कल्याणपुर चौक
समस्तीपुर, बिहार