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प्रेम-सुधा बरसाना रे

 




हृदयांगन में बादल बन छा जाना रे।

कवि, गीतों से प्रेम-सुधा बरसाना रे।।



सम्बन्धों की क्यारी में अब पुष्प नहीं,

नागफनी वाले पौधे उग आते हैं।

स्वार्थ जगत के पंछी आकर रिश्तों से,

भावुकता के सब दाने चुग जाते हैं।

मन के रीतेपन में रस टपकाना रे।

कवि, गीतों से प्रेम-सुधा बरसाना रे।।



जिनका जीवन रोटी का पर्याय हुआ,

सिर पर छत का होना एक कहानी है।

सपनों की भी पहुँच नहीं है आँखों तक,

दो गड्ढों में ठहरा खारा पानी है।

जाकर उनको अपने गले लगाना रे।

कवि, गीतों से प्रेम-सुधा बरसाना रे।।



हिंसा का आतंक जगत में जारी है,

शांति प्रयासों के परिणाम अधूरे हैं।

दुनिया की तैयारी ढीली-ढाली है,

दहशतगर्दों के मंसूबे पूरे हैं।

जग को ख़तरे की तस्वीर दिखाना रे।

कवि, गीतों से प्रेम-सुधा बरसाना रे।।



मज़हब-मज़हब विश्वासों की डोर नहीं,

बस्ती-बस्ती नफ़रत के अंधियारे हैं।

कैसे जग में प्रेम-उजाला फैलेगा,

स्वयं धर्मगुरु विद्वेषों के मारे हैं।

अब तो तू ही कोई अलख जगाना रे।

कवि, गीतों से प्रेम-सुधा बरसाना रे।।



बृज राज किशोर ‘राहगीर’

ईशा अपार्टमेंट, रुड़की रोड,

मेरठ -250001

उत्तर प्रदेश