शत-शत है नमन मेरा उनको ,
जो जेठ की गर्मी सहते हैं।
घनघोर बरसते पानी में,
भी कठिन परिश्रम करते हैं॥
अन्न को पैदा करते हैं वो,
संपूर्ण समर्पित हो करके।
कष्टों को सह-सह करके भी,
ख़ुशहाली देते आ करके॥
ऐसी विभूतियाँ हे प्रभुवर,
शत-शत वर्षों तक रहें अमन।
ऐसा आशीष उन्हें देना,
उपवन में उनके खिलें सुमन॥
कन-कन में अन्न की चाह जिन्हें,
ऐसी जिनकी धरती माता।
उनको ये गीत समर्पित है,
जिनको प्यारी धरती माता॥
रोहिलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली।