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अन्नदाता


शत-शत है नमन मेरा उनको ,

जो जेठ की गर्मी सहते हैं।

घनघोर बरसते पानी में,

भी कठिन परिश्रम करते हैं॥

 

अन्न को पैदा करते हैं वो,

संपूर्ण समर्पित हो करके।

कष्टों को सह-सह करके भी,

ख़ुशहाली देते आ करके॥

 

ऐसी विभूतियाँ हे प्रभुवर,

शत-शत वर्षों तक रहें अमन।

ऐसा आशीष उन्हें देना,

उपवन में उनके खिलें सुमन॥

 

कन-कन में अन्न की चाह जिन्हें,

ऐसी जिनकी धरती माता।

उनको ये गीत समर्पित है,

जिनको प्यारी धरती माता॥

 

प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह

रोहिलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली।