एकाएक यूँ चले जाने और गायब हो जाने में बड़ा फर्क है। आदमी एकाएक उठकर चल देता है, थोड़ी चहलकदमी करता है,कुछ सोचता है,किसी से बहस करता है, झगड़ा करता है,रहस्य की बातें करता है,मुस्कराता है,बेशक इन बातों का कोई हल हो या न हो-लौटकर अपने स्थान पर आ जाता है। आदमी एकाएक उठकर किसी से बातें करने लगता है,चाय पीने चला जाता है,पान की तलब लगती है झट पनवाड़ी की दुकान पर,कभी टायलेट में तो कभी पान की पीक थूकने और नहीं तो हाय हैलो करने ही अपनी सीट छोड़ कर एकाएक चला जाता है।लोग आते जाते हैं। कोई किसी की परवाह नहीं करता। सबका अपना निजी मामला, कोई हस्तक्षेप भी क्यों करे? कोई किसी को मुड़ कर भी नहीं देखता कि कहाँगया?
सब समझदार हैं। मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक। वैसे भी किसे फुर्सत है कि केबिन केबिन झांकता फिरे कि साब अभी तो यहां थे अब कहाँगए। एक बार बनवारी ने सिद्धू बाबू से पूछ लिया- "बड़े साहब याद कर रहे थे। कहाँचले गए थे आप?
"अबे,अब तेरे बड़े साहब से पूछकर थूकने जाना पड़ेगा"-और बनवारी ने ऐसे ही जाकर साहब को बता दिया। उलटी उसी को डांट पड़ी-"तुम्हें बात कहने की तमीज अभी तक नहीं आई बनवारी। यों नहीं कह सकते थे कि आपको बड़े साहब ने याद किया है। यह पूछने की क्या जरूरत थी कि आप कहाँगए थे।"
तनी फजीहत के बाद कौन पूछता फिरे। बनवारी की देखा देखी सभी ने कान पकड़ लिए। अपनी बला
से कोई भाड़ में जाए। बस सुबह दस बजे आफिस खुला। जो आ गया उससे अटैंडेस रजिस्टर पर दस्तख़त करा लिए। अपने अपने काम में सब मशगूल हो गए। दस्तख़त करके कौन कहाँरपट गया इसके भी कोई मायने नहीं। दादा टाइप बाबू अक्सर दस्तख़त करके चाय की कैंटीन में या पनवाड़ी की दुकान पर गालों में पान ठूंसे, सिगरेट के छल्ले बनाते मिल जाएंगे।
सुबह कितने कर्मचारी काम पर आए और शाम को कितने वापस गये उसकी कोई लिखत पढत नहीं। सरकारी दफ्तर है। कोई भर्ती छंटनी दफ्तर नहीं कि आते जाते समय बाबुओं की गिनती करनी पड़े। हर बात का लेखा जोखा नहीं रखा जाता|
लेकिन पिछले एक सप्ताह से एक ही चर्चा है कि मोरे साब कहाँचले गए। इक्कीस तारीख को प्रतिदिन की भांति दफ्तर आएं। अपने केबिन में गये। जेब से चश्मा निकालकर भेज पर रखा। कलम निकालकर फाइल पर रखी और किसी को फोन किया। किसे किया ये तो वे ही जाने। बनवारी एक गिलास पानी प्लेट से ढक कर टेबिल पर रख गया। इसके बाद दैनिक कार्य शुरू। प्रतिदिन कि यही नियम।रोज जल्दी आना देर से जाना। कोई पैंडिंग वर्क नहीं। यदि रह गया तो छुट्टी वाले दिन आकर कर जाना। न किसी के भले में न बुरे में।न किसी से हंसना न बोलना। बेतकल्लुफी का तो प्रश्न ही नहीं। अपने काम से काम। कछुए की तरह स्वंय में सिमटे रहना।ऐसे ही थे मोरे साब। मकान मालिक का किराया पहली तारीख को उसके खाते में जमा करा देते।कभी मिल गये तो राम राम वरना अपना काम से काम।मोरे साब कब आए कब गये मकान मालिक को भी क्या मतलब?वह भला मानुष भी किस किस की खबर रखें। मकान किराए पर दिया है किराएदार की चौकीदारी का जिम्मा नहीं लिया। अपने ही कामों से फुर्सत नहीं मिलती। लेकिन इक्कीस तारीख के बाद से मोरे साब सबके गले की फांस बन गये।
किसी ने उनकी खैर खबर क्यों नहीं रखी।ग्यारह बजे इक्कीस तारीख को अपने केबिन से बिना बताए कहाँऔर क्यों चले गए।बड़ी अजीब स्थिति है। अखबार और पुलिस वालों की वजह से नाक में दम है।जब से मोरे साब की पत्नी ने शाखा प्रबंधक झा साब के नाम से अपहरण की रिपोर्ट कराई है आफिस में जैसे सन्नाटा पसर गया है।झा साब तो अंडर ग्राउंड हो ही गये। कोई भी आपस में मोरे साब की बात करने से घबराता है।क्या पता कौन सुन ले और उसी को मोरे साब के गुम होने का कारण समझ लें।
हैड आफिस के बड़े-बड़े अधिकारी चक्कर लगाते रहते हैं।पूरा प्रशासन हिल गया है। बनवारी, रणजीत,मनकू और हवलदार से (जिसे लोग होलदार कहते हैं) इस एक सप्ताह में सैकड़ों बार पूछताछ हो चुकी है। बेचारे क्या जबाव दे। वे तो अक्सर इधर उधर घूमकर कैंटीन में चाय बीड़ी सुड़का करते हैं। या फाइल इस टेबिल से उस टेबिल पर पंहुचा देते हैं। और किस साब की किस्से लगती है-चर्चा करते रहते हैं। फिल्मों की बातें भी रस लेकर होती है। सारे दिन में दो चार बार साब की जी हुजूरी भी कर लेते हैं। अब यह तो उनके काम में शामिल नहीं है कि एकाएक कोई कहाँजा रहा है,वे उसके पीछे-पीछे घूमकर उसकी जासूसी करें।
ऐसा भी नहीं है कि उन्हें मोरे साब के जाने या गुम हो जाने का दुःख नहीं है। खूब दुःखी हैं वे। उनकी पत्नी और बच्चों का दुःख देखा नहीं जाता।पर कर क्या सकते हैं। उन्हें उस जगह का जरा सा भी इल्म होता तो मोरे साब को पकड़ लाते और सबके सामने खड़ा कर अपनी पीठ ठुकवाते। पुलिस भी कई बार आकर छानबीन कर चुकी है कि कौन कौन मिलने आता था। अब क्या बताएं,सारे मिलने वालों को कैसे जाने?आदमी जब सामाजिक व पारिवारिक प्राणी है तो लोग आएंगे ही। हंसी ठठ्ठा भी करेंगे। अब केबिन के बाहर रजिस्टर तो रखा नहीं है कि हर आने वाली का नाम समय और पता नोट किया जाए। नौकरी करते हैं। डेवलपमेंट आफिसर हैं तो लोग लोन लेने के सिलसिले में मिलने आएंगे ही। नौकर चाकर साब के मामले में क्या बोल सकते हैं? फिर साब के काम से उन्हें क्या लेना-देना। किसी से झगड़ा वे नहीं करते थे। भला ये भी कोई सवाल हुआ। आदमी न हुआ मिट्टी की मूरत हो गया। छोटे छोटे बच्चों को गुस्सा आ सकता है तो भला एक भरा पूरा आदमी किसी पर गुस्सा क्यों नहीं कर सकता? किसी से झगड़ क्यों नहीं सकता?अब यह भी याद रखो कि कब गुस्सा आया कब झगड़ा हुआ दफ्तर है ये। अक्सर झगड़े होते रहते हैं। अब क्या झगड़ों की फाइल बनाई जाए। पारिवारिक स्थिति कैसी है? पुलिसिया सवालों से भगवान बचाए। नौकरी करने वालों की पारिवारिक स्थिति कैसी होती है सभी जानते हैं। सभी एक थैली के चट्टे बट्टे। किसी ने जरा अच्छा का पहन लिया, किसी ने थोड़ा कम। किसी को पैतृक मकान मिल गया, कोई किराए के घर में रह रहा है। अब नौकरी वाला खेती क्यारी करने से तो रहा। खेती बाप दादा ही करते होंगे। नौकरी वाला कलम चलाएगा या हल?
बैंक से ऋण तो नहीं लिया। बैंक से ऋण लें या न ले पुलिस वालों को मतलब? कोई ऋण लेगा तो क्या ढिंढोरा पीटता फिरेगा।पूछना है तो बड़े साहब से पूछो। वहीं फाइल पलट कर बता सकते हैं।हम साब के नौकर और हम ही साब की बखिया उधेड़ने लगें।वे गुम क्या हुए उनका जीवन ही सार्वजनिक हो गया।
कोई गवन का केस तो नहीं सारी फाइलें छान मारी । कहीं कोई संकेत नहीं। रीजनल मैनेजर दौड़े आए पत्नी बच्चों ने सुना तो धक से रह गए मोरे साहब घर गए ही नहीं किसी नाते रिश्तेदारी में भी नहीं किसी रोड एक्सीडेंट में भी नहीं फिर एकाएक कहाँपुलिस ने मालिक मकान की भी ऐसी कम तैसी कर दी जिसके कहने से मकान दिया उसे भी तलब कर लिया ।वे हैं सान्याल बाबू ।उसी दफ्तर में काम करते हैं उनका भी यही उत्तर था|
मोरे साहब स्टाफ के आदमी हैं आदमी आदमी के काम आता है एक कमरे का मकान चाहिए था दिला दिया|
इसी बीच सान्याल को टोक दिया गया-"मोरे साब को एक कमरे का ही मकान क्यो चाहिए था?"
"उनकी यही रिक्वायरमेंट थी। अकेले ही रहना चाहते थे।"
"क्योंकि परिवार को साथ रखना नहीं चाहते होंगे"-सान्याल ने उत्तर दिया।
"परिवार को साथ रखना क्यों नहीं चाहते थे?क्या परिवार से मतलब पत्नी से कोई लड़ाई झगड़ा?"पुलिस वालों के इस सवाल पर खीज उठा सान्याल।
"यह आपत्ति क्या थी मुझे नहीं बताई।अगर मिले तो पूछ लूंगा"।
"अगर मिले से मतलब?आप जानते हैं वे कहाँहैं?"
"मैं जानता होता तो आपके सामने लाकर खड़ा कर देता।और आपके सवाल मुझे नहीं झेलने पड़ते। मुझे तो आप माफ करें।"-हाथ जोड़ दिए सान्याल ने।
"अरे सान्याल साब ऐसे कैसे माफ कर दें।आप ही तो उनके करीबी मिले हो। आपसे ही कुछ जानकारी हासिल हो सकती है।आप ऐसे पल्ला नहीं झाड़ सकते।"वे वजह पास पड़ी कुर्सी पर डंडा फटकारा टू स्टार ने।
"मैं मोरे साब के विषय में इससे ज्यादा कुछ नहीं जानता।आप मेरा पीछा छोड़ें। मैं भी परिवार वाला आदमी हूं। दस काम लगे रहते हैं।"
"हम समझते हैं, लेकिन आपको कैसे छोड़ सकते हैं।आपके परिचित हैं,तभी आपने अपनी सिफारिश पर उन्हें मकान दिलाया। कोई किसी ऐरे गैरे के नहीं दिला सकता। फिर आपके स्टाफ के व्यक्ति हैं।कभी अकेले में यहां या वहां यानि आपके यहां चाय पानी पीते समय गुफ्तगू अवश्य होती होगी। अपने बारे में कुछ बताते होंगे।"
"जी नहीं, मैंने उन्हें अपने यहां चाय पर कभी नहीं बुलाया और न कोई गुफ्तगू की।आप मालिक मकान से पूछिए।शायद वही आपको कुछ बता सकें।"
मालिक मकान शिवरतन पहले ही हाथ जोड़ कर खड़ा था और मन ही मन उस कुघड़ी को कोस रहा था जब मोरे को मकान किराए पर दिया। उन्हें क्या पता था कि ये दिन भी देखना पड़ेगा।दसियों किरायेदार रहकर जा चुके हैं पर मोरे साब की तरह कोई गुम नहीं हुआ। बेचारे सान्याल को भी क्या पता था। पुलिस वाले कैसे कैसे सवाल कर रहे हैं।अब उनकी बारी है। पुलिस वालों को अपनी ओर मुखातिब होते देख शिवरतन पहले ही बोलने लगा-
"मैं क्या बता सकता हूं हजूर।सान्याल बाबू मेरे पड़ोसी हैं। नेकदिल हैं। उनके कहने पर मकान दे दिया। कहाँआते जाते है,क्या खाते पीते हैं,कौन मिलने आता है -मै कब तक पता रखूंगा। मेरे पास इतना वक्त ही नहीं होता कि किसी से फालतू बात करुं।"
"यानि फालतू बात करने का वक्त न सान्यालजी के पास न आपके पास वह हमारे पास है ,जो हम कर रहे हैं।आदमी सारा आज यों गायब हो जाता है जैसे गधे के सिर से सींग। कोई सुराग भी छोड़ कर नहीं जाता।मारते रहो अंधेरे में हाथ पांव और ढ़ूंढते रहो सुराग।लाख पूछों कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं।लोग उसकी नेकदिली गिनाते हैं, कहीं कोई लुच्चे लफंगेपन की बात नहीं करता।साला करेक्टर ने हुआ मंदिर की मूर्ति हो गया।साला,हरामी की औलाद -दो चार गंदी गालियां देते डंडे फटकारते पुलिस वाले आते जाते रहते।
पत्नी जया और दोनों बेटे दौड़े चले आए।बड़ा बेटा संयम इंजीनियरिंग कालेज रुड़की में पढ़ रहा है और छोटा नियम बी.एस.सी.कर रहा है। बच्चों की पढ़ाई के कारण ही जया को बच्चों के पास रहना पड़ रहा है।इसी से पति पत्नी अलग-अलग रह रहे हैं।समय काटने के लिए जया ने एक स्थानीय कालेज में टीचिंग शुरू कर दी थी। लेकिन इससे मोरे साब की इगो हर्ट होती थी।जया ने ये जॉब भी छोड़ दी और पूरी तरह घर परिवार को समर्पित हो गई।
उसे क्या पता था कि कभी ऐसा भी दिन आएगा कि अध्यापन करने और छोड़ने का कारण सार्वजनिक करना पड़ेगा। हैरान और परेशान जया और बच्चे कहाँढूंढे। फोन द्वारा रिश्तेदारों से सम्पर्क हुआ। जिसने सुना वही दौड़ा चला आया।जितने मुंह उतनी ही बातें। सबके चेहरों पर टंगे प्रश्न जया की मुश्किलें बढ़ाने लगे। जया का व्यैक्तिक वैवाहिक जीवन सार्वजनिक सवालों का कूड़ा घर हो गया।
जहां जया और बच्चे संड़ाध से बचने के लिए नाक पर रूमाल भी नहीं रख सकते थे।
उस दिन दूध का पैकेट और नाश्ता लेकर संयम थका बुझा सा घर लौट रहा था,घर के बाहर ही इंस्पेक्टर ने रोक लिया।पीठ थपथपाई।संयम ने मुड़ कर देखा। चलते चलते रुक गया-"कुछ कहना है अंकल?"
"तुम पढे लिखे और समझदार हो संयम। तुम्हारे पापा क्यों गये यह तो मालूम करना ही पड़ेगा।तभी कोई सुराग मिल पाएगा। अपने पापा की प्राइवेट लाइफ का शायद तुम्हें कोई अंदाजा हो।अपनी मम्मी के सामने कहना न चाहते हो। शायद तुम्हारे मम्मी पापा के बीच कोई तीसरा-----? अधूरा छोड़ दिया प्रश्न और संयम की आंखों में झांक कर देखा।
संयम का मन हुआ कि इस इंस्पेक्टर के स्टार नोचकर फेंक दें। वर्दी फाड़ दे,मुंह पर थूक दे। आंखें जलने लगीं-"नहीं,नेवर....","नो गुस्सा..खुले दिमाग से सोचो।अभी नहीं,कभी बचपन में या साल दो साल पहले।या कहीं कुछ सुना हो दोस्तों से , रिश्तेदारों से।जल्दी नहीं है।खाली समय में अच्छी तरह याद करके बताना।"डंडा हिलाता मुस्कराया इंस्पेक्टर चला गया।
संयम सोच में पड़ गया। इंस्पेक्टर ने जरुर ऐसे सवाल नियम और रिश्तेदारों से किये होंगे।पता नहीं लोगों ने क्या क्या उत्तर दिए होंगे। नियम ने क्या कहा होगा? वे दोनों आपस में इस विषय पर क्या बात करें। मम्मी को क्या बताएं।वे क्या सोचेंगी। कितनी परेशान हैं आज कल। सारे दिन आंसू बहते रहते हैं।लोग कैसी-कैसी बातें कर रहे हैं। कितनी सड़ांध है उनकी बातों में।
रात को जया अपने बिस्तर पर लेटी थी।तेजी धीरे से उसके बालों में अंगुली फिराते हुए बोली-"दीदी, चिंता मत करो। जीजू जल्दी लौट आएंगे। आपसे कुछ कहासुनी तो नहीं हुई?"
जया सब समझती है। सहानुभूति के नाम पर लोग क्या कहना और पूछना चाहते हैं।जया ने तेजी की ओर देखा और बिना उत्तर दिए करवट ले कर लेट गई।अगले दिन देवर जेठ जिठानी सबके बीच चीर-हरण हुआ|
"बेटी जया, तेरे और राहुल के बीच कोई झगड़ा हुआ।पति पत्नी के बीच अक्सर हो जाता है। हम उसे मनाकर ले आएंगे।तुम दोनों कब से अलग....मतलब तुम यहां और वह वहां?"
जया न कुछ कह पा रही थी न सुन पा रही थी। भाभी और भाई की आंखों में खून उतरा था।
"सच बता जया ,किस्से संबंध था उसका।वह कहीं भी जा छिपेगा ऐसा कैसे सोच लिया उसने?"
जया ने भाई के मुंह पर हाथ रख दिया-"भैया अपनी सोच की दिशा बदलो।आपको मेरे सिर की कसम"-और जया भाई के कंधे पर सिर रखकर रो पड़ी।
क्या कहे जया,किसका किससे संबंध,किसका किससे झगड़ा,ये तो उसने सोचा ही नहीं, लेकिन उसका अपना आदमी बिना कुछ कहे सुने अचानक एक दिन गायब हो जाएगा तो सवाल उठेंगे ही। अपनों की ही पुलसिया निगाह हो जाती है। नौकरी करने और छोड़ने को ही उछाल कर रख दिया है। लेकिन अफसोस है कि जया को राहुल मोरे अपने केबिन से एक फोन तो कर सकता था। उसने अपना क्यों नहीं समझा? किसी ने फोन करके बुलाया उसे।पर किसने?कोई भी हो सकता है।लाॅन पास कराने वाले आते ही रहते हैं।हर तरह के आदमी होते हैं। कौन कैसा है ,हरेक के चेहरे पर लिखा नहीं रहता।
परेशान हो उठी जया।उसका दिमाग इसी दिशा में काम करने लगा। आफिस जाकर ही पता चलेगा कि राहुल ने कहाँकिस का लाॅन निरस्त किया।शायद उन में से ही कोई हो। लेकिन राहुल ने कभी अपनी कोई परेशानी नहीं बताई। आफिस को कभी घर उठाकर नहीं लाया।जितने भी समय घर में रहे घर के होकर रहे। फिर आफिस की परेशानियां कैसे जानती।
अफसोस हो रहा था जया को कि राहुल की उदिग्नता या परेशानी को वह क्यों नहीं समझ पाई।बड़ी आसानी से यहां रहती रही और राहुल वहां।कभी कोई शिकायत दोनों ने नहीं की। एक रूटीन जिंदगी हर शनिवार की शाम राहुल का घर लौट आना और हर सोमवार को प्रातः चले जाना।
यह प्रश्न भी कहीं जया के मन में कोंध गया- क्या राहुल ने अपनी दुनिया कहीं और बसा ली उसे एकदम उखाड़ फेंका लेकिन अपने इस विचार पर उसे विश्वास नहीं हुआ ।राहुल ऐसा कभी नहीं कर सकता लेकिन कहीं कुछ हुआ तो है और हुआ क्या है यही समझ नहीं आ रहा सभी अंधेरे में हाथ पैर मार रहे हैं।
आदमी आता है चला भी जाता है लोग रोते-रोते बिदा भी कर देते हैं। आंखों के सामने से जाने का एक सुकून होता है लेकिन जो अचानक अपनी सीट से यूँ गुम हो जाए उसका क्या करें? उसके मिलने तक उसे चर्चा में रहना ही है।
विश्वास नहीं है जया को ,विश्वास नहीं है संयम नियम को कि कहीं उनके पापा को कोई बहका कर ले जा सकता है ।वह करोड़पति नहीं है, जहां से 20 40 लाख फिरौती के मिल जाएं। पापा का कोई दुश्मन नहीं। कभी किसी से कोई झगड़ा नहीं ।पापा के किन्हीं अन्य संबंधों की जानकारी उन्हें नहीं है। मम्मी पापा को कभी झगड़ते नहीं देखा। फिर पापा क्यों गुम हुए? किससे पूछे, किससे समझें, क्या उनके पापा की तरह कोई और गुम हुआ है अपने पीछे सवालों की नागफनी छोड़कर?
कहां- कहाँमम्मी को लेकर भागे नहीं फिर रहे ?मानव अधिकार आयोग से भी मम्मी ने अपील की है कि उनके पति को ढूंढा जाए। वकील से सलाह ली है। मामा जी तो स्थानीय मंत्री के आदेश पत्र की कॉपी मुख्य शाखा प्रबंधक जिलाधिकारी और एसएसपी को थमा आए हैं लेकिन कहीं कोई परिणाम नहीं निकल रहा। जिनकी लोन राहुल ने निरस्त किए थे पुलिस का शिकंजा वहां भी कसा हुआ है निगरानी की जा रही है।
जया ने अपने कानों से सुना उसकी देवरानी नंदा कह रही थी-
"बड़ी भाभी ,आप माने या न माने पर मझली दीदी को अपनी पढ़ाई का ,अपने सलीके का बड़ा गर्व है ।कैसे नख शिख से सजी सवंरी रहती हैं। मुसीबतों का पहाड़ टूटा है पर मजाल की साड़ी की प्लेट इधर से उधर हो जाएं ।और मझले भैया सीधे-साधे। दीदी के सामने गवार से। क्या स्वयं को कभी उनके समक्ष खड़ा कर पाते होंगे। आदमी के लिए इतना ही क्या कम है ।अभी भी किसी के सामने बोलने में जया को जरा भी संकोच नहीं।"
सुनकर हतप्रभ रह गयी जया।इन अपनों में कितना विष भरा है और यह विष उड़ेलने का समय है। संयम और नियम के कानों में पड़ेगा तो क्या सोचेंगे? वे भी उसी को दोष देंगे। उनकी सोच का नजरिया भी यह लोग बदल देंगे। अभी यदि नंदा को बड़प्पन के अधिकार से चुप करा भी देगी तो कल किस-किस को कराएगी, सोचकर आंखें धुआं धुआं हो उठी।
इंक्वायरी करने आए इंस्पेक्टर पर बरस पड़ी जया-" इंस्पेक्टर साहब आप बार-बार यहां आकर कारण खोजते हैं और अपना वक्त बर्बाद करते हैं। यदि कारण पता होता तो हम ना ढूंढ लेते। बाहर आप कुछ करते नहीं। आपके सवालों ने नाक में दम कर के रख दिया है। क्या अभी कुछ और पूछना है?"
"आप धैर्य ना छोड़े जया जी। सुराग तो घर से ही निकालना पड़ेगा। ऐसा कोई आपका अपना जरूर होगा जो मोरे साहब के विषय में जानकारी रखता होगा।
इंस्पेक्टर की बातों ने फिर से जया को सोचने पर विवश कर दिया। कौन हो सकता है वह? राहुल का इतना अपना कौन है? राहुल के गुम होने से किसे फायदा होगा? जया की सोच नफा नुकसान के चारों ओर घूमने लगी। राहुल के गुम होने से भला किसका लाभ होगा? पैतृक संपत्ति का बंटवारा हुए 10 साल हो गए। राहुल अपने गांव की जमीन बेच आए और शहर में अपना मकान बनवा लिया।
बिना बताए राहुल अपने आप चलकर कहाँऔर क्यों गुम हुए? उलझन थी कि सुलझ ही नहीं रही थी
"जया राहुल का कोई इश्क विश्क का चक्कर तो नहीं "-बड़े भैया ने बिना लाग लपेट के सीधे पूछ लिया।
"क्या कह रहे हैं बड़े भैया इस समय जरा सोचिए होठों पर बात आई नहीं की लोग ले उड़ेंगे। विवाह के बाइस साल बाद यह सवाल कभी मेरे मन में नहीं आया तो आप कैसे सोच गये?" अपमान से तिल मिलाकर रो पड़ी जया,
"भावुक मत बनो ठंडे दिमाग से सोचो। गहना वाला प्रकरण भूली नहीं होगी तुम"
" उसे याद कर गड़े मुर्दे क्या उखाड़ना। उनका यह गुनाह तो तभी माफ कर दिया गया। फिर गहना का विवाह करा दिया यह अपने परिवार में मगन है।"
"क्या और कोई गहना नहीं आ सकती?"
"आ सकती है भैया लेकिन ऐसे ही बातें अधिक समय तक नहीं छुपती। समाज की हजारों आंखें हैं। वहां जाकर पूछिए ।सब उनके सद् व्यवहार की प्रशंसा कर रहे हैं और एक यहां आप लोग उनके चरित्र पर कीचड़ उछाल रहे हैं। मुझे तो सोच कर भी शर्म आती है। प्लीज बड़े भैया मेरे लिए ,बच्चों के लिए यह बात मन में ना लाएं"- कातर हो उठी जया|
बड़े भैया उसकी पीठ थपथपा कर उठ गए ।जया समझती है उन्हें। बड़े भैया जिस बात को ठान लें करके छोड़ते हैं। वे इसी दिशा में राहुल को ढूंढगे ।इस्पेक्टर भी इसी और इशारा कर रहा है ।यह मर्द मर्द के मन की बात कैसे समझते हैं और हम औरतें नादान बनी रहती हैं ।वह ऐसी कोई बात कभी सोच ही नहीं पायी।
पंद्रह दिन हो गए कहीं कोई सुराग नहीं कोई फोन नहीं। जया वकीलों से मिल रही है। एक पैर मेरठ तो दूसरा हापुड़। रातों की नींद और दिन का चैन गायब। रिश्तेदारों का आवागमन,फोन के सिलसिले टूटे भी तो क्यों कैसे? चर्चाएं थम नहीं रही।
अब तो लोग जया के चरित्र पर भी अंगुली उठा रहे हैं। कहीं जया ने ही अपने किसी यार के द्वारा ...औरतें भी आज क्या कुछ नहीं कर रही ?जो ऊपर से देखने में जितनी भोली नजर आती हैं अंदर उतना ही विष भरा रहता है। रोज ही अखबारों में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती हैं।
जया गरम लावे सा सबकुछ कानों में उतार रही है। एक लपट सी उसकी आंखों में होती है और उसे जला जाती है ।मन होता है इन अपने कहने वालों की बांह पकड़कर एक एक को बाहर धकेल दे और दरवाजा बंद कर बैठ जाए।थोड़े दिन बाद अपने आप लौट आएंगे। एक बार लौट आए राहुल देख लेगी उसे। कैसी कैसी फजीहत कराई है उसने। क्रोध की लपटें उठी और जला गई जया को। राहुल लौटता क्यों नहीं।
शाम को 5:00 बजे इंस्पेक्टर अपने दो साथियों के साथ घर पहुंचा। बड़े भैया और संयम से गुपचुप बात की ।फिर उन्हें सरकारी जीप में बिठा कर ले गया ।जया को किसी ने कुछ नहीं बताया ।आना जाना तो लगा ही रहता है|
रात को 8:00 बजे के लगभग लौटे भैया और संयम ।रिश्तेदारों में कानाफूसी, चटपट इंतजाम होने लगे, जो रिश्तेदार शहर में थे उन्हें फोन करके बुला लिया गया। सबकुछ इशारों इशारों में गुपचुप, पड़ोसी भी इकट्ठे होने लगे ।पुलिस वाले भी बाहर खड़े थे ।
जया के सब्र का बांध टूट गया-"संयम क्या बात है सब गुपचुप बातें कर रहे हैं कोई मुझे क्यों नहीं बता रहा? तू कहाँगया था? तेरा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है?
"मम्मा-पा--पा।" हकला गया संयम|
"मिल गये तेरे पापा"-झिंझोड़ दिया संयम को।
"हां मम्मा, शिनाख्त के लिए ले गया था इंस्पेक्टर"|
"कहाँहैं वे?"
"आप न देखें तो ठीक रहेगा'-जया के कंधे पर सिर रखकर रो पड़ा सयंम।अब तक बड़े भैया ने स्वंय को रोका हुआ था वे भी रो पड़े।
"अब सब कुछ समाप्त हो गया मेरी बहन"|
"सयंम,एक बार मुझे भी दिखा न। कहाँहै, कैसे हैं?"
"मम्मा, पापा टुकड़ों में कटकर लौटे हैं।किसी ने बेरहमी से मारा है,"और सयंम ने अर्थी पर रखे बोरे की ओर इशारा किया।
"ये क्या संयम, ऐसे कैसे चले गए तेरे पापा।मैं एक बार उनके जाने का विश्वास तो कर लूं। क्या पता तू ठीक से न पहचान पाया हो। अभी बच्चा है।"
जया रोती बिलखती बाहर भागी। देखा अर्थी पर बोरा रखा है।
"अरे सयंम और नियम, अपने पापा को खोलो। उन्हें नहलाओ। अर्थी पर लिटाओ। कफ़न डालो, फूल चढ़ाओ,ऐसे भी कहीं कोई जाता है....ऐसे भी कोई जाता है.....'जया का क्रन्दन सबको हिला रहा था।
सुधा गोयल
२९०-ए, कृष्णानगर, डा दत्ता लेन, बुलंद शहर-२०३००१
उत्तर प्रदेश