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भूलते रिश्तों की चीख



घर में शादी का माहौल था । आंगन में लगन बंधाने की रश्म की तैयारी चल रही थी । तीन दिन बाद सरला की शादी थी । लड़का-सी आर पी एफ का जवान था । दो माह पहले ही ज्वाइनिंग हुई है ‌ ‌‌‌। शादी के बाद उसे सीधे ट्रेंनिग में शामिल होना था । नौकरी वाला दामाद मिलने से घर में सभी खुश थे । घर आंगन में हंसी खुशी का माहौल था । परन्तु सरला की फूफी मीरा देवी बेहद नाराज़ दिख रही थी । जब से आई है ठीक मुंह किसी से बात नहीं कर रही थी ‌। मेहमान वाले घर में अब भी अकेली बैठी कहीं खोई हुई सी थी । दूर के रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था । सभी के चेहरों में खुशी के रंग चढ़े हुए थे। सरला की मां रेणुका देवी का ठाठ देखते ही बनता था । तभी आंगन से रेणुका देवी की आवाज सुनाई पड़ी ‌। अपनी दूसरी बेटी सारिका जो कार्मल स्कूल में कक्षा सात में पढ़ रही थी से कह रही थी-" देखो फूफी कहां बैठी है, बुला लाओ ! चोक पुराई करनी है !"

सारिका सरपट मेहमान वाले घर में दौड़ गई पर उल्टे पांव भाग आई और मां के आगे रोने लगी । उसकी कानों में अब भी फूफी मीरा देवी की फटकार गूंज रही थी-"क्या बुआ आंटी-बुआ आंटी लगा रखी है। चल भाग यहां से ...!"

मां ने पूछा" क्या हुआ किसी ने कुछ कहा क्या ?"

" हां मैंने कहा ...!" फूफी ने आंगन में कदम रखा ।

" क्या हुआ दीदी ! किसी ने कुछ कहा है क्या ? देख रही हूं आप जब से आई है। खुश नहीं है । "

" बेटियों को क्या पढ़ा रही है ? जब संस्कार ही नहीं बचेगा तो रिस्ते और रिश्तेदार कैसे बचेंगे ?"

" हम कुछ समझे नहीं ! आप कहना क्या चाहती है दीदी ? हमसे कोई गलती हुई हो तो आप बड़ी है, समझा सकती है और डांट भी सकती है पर ऐसे मौके पर...!"

" यही तो.. यही तो ! आज के बच्चों को क्या पढ़ाया जा रहा है ? शहर में पढ़ने लगी तो बड़े-छोटे की पहचान भूल जाओ । गांव समाज के संस्कार भूल जाओ । दादा-दीदी, काका-काकी कहने में शर्म आने लगे तो वैसे स्कूल की पढ़ाई से अच्छी है गांव के स्कूल की पढ़ाई । यहां ऐसी आंटी घंटी की पढ़ाई पर जोर तो नहीं दिया जाता है । देखो तो भला-, फूफा फूफी कह बुलाना शर्म लगता है ! उसे सीधे मौसी बुलाना तोहिन लगता है । उसे सीधे मामी कह बुलाना गंवारपन लगता है ।

जिसे देख वही- " बुआ आंटी, मौसी आंटी -मामी आंटी ! यह सब क्या है । आज फूफी बुलाने में शर्म आ रही है। कल फूफी को घर बुलाने में शर्म आने लगेगी ,

कल ही की बात है, रघुवीर काका का बेटा बोकारो सीटी कॉलेज में पढ़ता है । घर आये अपने फूफा को फूफा न कहकर " अंकल-अंकल " कह दो बार पुकारा । फूफा ने कोई जवाब नहीं दिया । यह देख उसकी मां झाड़ू लेकर निकली और बेटे की ओर लपकी " नालायक, बहुत पढ़ लिया ! फूफा कहने में शर्म आती है । " और एक झाड़ू लगा दी ‌।"

" बस करो दीदी ! बच्ची की जान लेगी क्या ! सारिका फूफी का पांव छूकर माफी मांगो और आइंदा कभी बुआ आंटी नहीं सीधे फूफी बुलाएगी ..जाओ !"

" माफ करो फूफी ! आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगी ! " और सारिका ने सचमुच कान पकड़ ली । यह देख सब ठहाका लगा हंस पड़े !

" आओ दीदी ..चोक पुराई....!"


श्यामल बिहारी महतो
बोकारो, झारखण्ड