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मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ

 


मुझे पढ़ी जिसने इस जग में, जीवन तिमिर मिटाया है।

नन्हें बालक हो या बूढ़े, ज्ञान –अमृत को पाया है।।

अक्षर अक्षर शब्द बने हैं, मंद बुद्धि खुल जाते है।

रामायण भगवत गीता में, भगवन दर्शन पाते हैं।।

 

अलग –अलग शाखाएँ मेरी, मनुज मुझे अपनाते हैं।

कभी मित्र बन अश्रु बहाते, अपनी व्यथा सुनाते हैं।।

रग –रग में बहते हैं मेरे, लोरी गीत कहानी हैं।

सागर से भी गहरी मानो, साधु संत की बानी है।।

 

खोलो जरा इतिहास को तुम, राजाओं की हैं बातें।

वेद ग्रंथ अरु झलकारी की, मुझमें सारी सौगातें।।

आज विश्व भी आगे बढ़ता, लगती सबसे न्यारी हूँ ।

नहीं धरा पर कोई अपना,हाँ मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ ।।

 

कभी अकेले नहीं समझना, आना मेरी बाहों में।

पाँव गड़े गर कंटक साथी, फूल बिछा दूँ राहों में।।

मुझ बिन जीवन व्यर्थ तुम्हारा, है जीवन की सच्चाई।

समझ सको तो समझो सारे, बातों में हैं गहराई।।

 

हूँ  किताब मैं इस दुनिया की, जरा मुझे तुम पहचानों।

ज्ञान भरा हैं भाषाओं का, शब्द शब्द को तुम जानो।।

लक्ष्य साध कर जो भी पढ़ते, परछाई बन जाती हूँ ।

जन्म मरण तक हर मानव के,मैं तो साथ निभाती हूँ ।।

   

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़