जब किसी की विदेश में नौकरी लगती है तो हमारे प्राय: मुँह से निकलता भला विदेश में रहकर नौकरी क्यों करना ? अपने देश में रहो …. अपने परिवार के लोगों के साथ रहो ….माँ बाप ने पढ़ाया ,लिखाया है ….. उनके पास रहोगे तो बुढ़ापे में माँ बाप की भीथोड़ी सेवा होगी ……। भला ये क्या बात हुई कि बच्चों को पढ़ाओ - लिखाओ और बच्चे हैं कि अपने पैरों पर खड़े होते ही बस फुर्र से उड़जाते हैं माँ बाप को छोड़ कर …..। विदेशी नौकरी भी कोई नौकरी है ……?
लेकिन एक दिन
हमारे सपूत ने श्रीमती जी को फ़ोन किया कि अमेरिका में उसे बहुत अच्छा अवसर मिला
है नौकरी का । बड़े चहकते हुए श्रीमती ने
बताया कि बेटा विदेश जा रहा है । अमेरिका में नौकरी लगी है । हम भी ख़ुशी
से उछले और हमारे विदेश में नौकरी करने वालों के प्रति नकारात्मक भाव मिनटों में न
जाने किस कोने में जा छुपे। हमें जो भी
मिलता हम सीना फुलाकर बड़े रोब से सुनाते ,” मेरा बड़ा बेटा
जल्दी ही अमेरिका जा रहा है । बहुत बड़ी
कंपनी में ……….बेटा इंजीनियर है ……….। ”
बेटे के
विदेश जाने के बाद भी जब भी कभी कोई पूछता कि बेटा क्या करता है तो हम शान से
छप्पन इंची सीना फुलाकर कहते ,” बेटा विदेश में है । बहुत बड़ी कंपनी में इंजीनियर है। “कुछ दिनों बाद ही लोगों ने पूछना शुरू कर दिया
कि कब जा रह हो अमेरिका । अब अमेरिका जाना
कोई दिल्ली मुंबई जाना जैसा तो है नहीं कि टिकिट लिया और बैठ गए ट्रेन में ……। अमेरिका
के लिए सबसे बड़ी अड़चन थी वीज़ा बनवाना ।
जैसे तैसे
वीज़ा फॉर्म भरा ,और वीज़ा की तारीख़ मिलने के बाद
वीज़ा इंटरव्यू की तैयारी कुछ इस तरह करनी पड़ी जैसे किसी बड़ीपरीक्षा की तैयारी
हो ….। इस तैयारी का भार श्रीमती के ऊपर
ही था क्योंकि वो अच्छी पढ़ी लिखी है । वैसे पढ़े लिखे तो हम भी हैं लेकिन हम पढ़े कम
और लिखे ज़्यादा हैं । वैसे भी हम तो उनके सामने बस कहने के ही पढ़े लिखे हैं । इसलिए हम ऐसी जगह पैर ही नहीं फ़साते जहाँ से
निकलने के लिए पैर ही कटाना पड़े। श्रीमती जी ने इंटरनेट पर मिलने वाली सारी
वीडियो ,ऑडियो, और अनेकों लेख सब घोट
कर पी डाले । हम आराम से पैर पसारकर सोते और वे दिन रात वीज़ा परीक्षा की तैयारी
में लगी रहती । उन्होंने हमसे भी कई बार कहा कि कुछ पढ़ लो … लेकिन हम उन्हें
हमेशा कह देते चिंता मत करो …. क्या होगा …… रद्द हो जाएगा वीज़ा ….. बस । अब
उन्हें भला कैसे कहते कि यदि हम पढ़ेंगे तो भला लिखेगा कौन ?
श्रीमती जी
की कृपा से वीज़ा भी मिल गया क्योंकि मैं यह नहीं कह सकता कि ऊपर वाले ली कृपा से
वीज़ा मिल गया क्योंकि ऊपर वाले की सही कोशिश की मुझे कोई जानकारी भी नहीं है । वीज़ा
मिलते ही हमारे साहिबज़ादे ने टिकिट भी भेज दिये । टिकिट आ गये तो अब अमेरिका तक
अट्ठारह घंटे का सफ़र ,वो भी हवाई जहाज़ में ……. । ट्रेन
में तो अट्ठारह दिन भी निकल जायें क्योंकि जब ट्रेनरुके आराम से स्टेशन पर उतारो
,जब चाहो चाय पाओ ,पकौड़े खाओ । लेकिन हवाई
जहाज़ में ………..। ख़ैर अब धीरे धीरे वो
दिन भी आ गया जब हम उड़ने के लिए तैयार हो गये।
हवाई अड्डे
पर प्रवेश करते ही लगा जैसे किसी दूसरे देश में पहुँच गए हों। क्योंकि अभी तक
रेलवे स्टेशन की ही भीड़ भाड़ देखी थी । रेलवे स्टेशन पर तो कही चाय वाला तो कहीं
पकौड़े वाला , की आवाज़ें सुनाई देती रहती हैं जिससे
एहसास हो जाता है कि कोई स्टेशन आया है । लेकिन यहाँ तो सब चुपचाप एक लाइन से दूसरी लाइन
में चलते जा रहे हैं। जिन्हें देख के लगता है कि ऊपर वाले ने रेल की सवारी अलग बनाई हैं और हवाई जहाज़ की अलग…… । कभी
कोई हमारी तलाशी लेता है ,तो कभी कोई हमारे सामान की,लगता था जैसे सारे आतंकी लोगों को यहाँ एकत्रित किया गया है ,जाँच के लिए …… अजीब लोग हैं ……. ख़ैर हमें क्या …… ?श्रीमती जी ने चलने से पहले हमें समझा दिया था ज़ुबान को बत्तीसी के अन्दर
ही रखना …….बाहर नहीं दिखाई देनी चाहिए । रास्ते में मुँह तभी खोलना जब कोई सवाल
करे…….किसी से कोई बहस नहीं करनी है ………कहीं भाषण भी नहीं देना ….. कोई कविता भी
नहीं सुनानी किसी को भी । वर्ना ऐसा न हो जाये कि बीच रास्ते से ही अमेरिका वाले
आपको वापस इंडिया पार्सल कर दें।
अमेरिका जाने
के उत्साह,में अच्छे बच्चे की तरह हमें सारी शर्तें मंज़ूर थी। क्योंकि हमें भी तो अमेरिका से आकर मिर्च मसालों
साथ कुछ क़िस्से कहानियाँ लोगों को सुननी थी । हवाई अड्डे की सारी बाधायें पार कर
हम अपनी उड़ान में पहुँचे तो द्वार पर ही उड़न सुंदरी ने बड़े अदब के साथ स्वागत
किया तो हमनें भी बड़े गर्व के साथ सीना फुलाकर स्वागत स्वीकार किया और अपनी
निर्धारित सीट परपहुँच कर ,बड़ी शान से श्रीमती को बताया
,” देखा तुमने हमारी प्रसिद्धि …… द्वार पर खड़ी सुंदरी ने कितने
सम्मान से मुस्कुरा कर हमें गुड मॉर्निंग
कहा ……. ज़रूर किसी कवि सम्मेलन में इसने मुझे सुना होगा या मेरा कोई लेख पढ़ा
होगा … और टिकिट पर नाम देखते ही देखा कैसे पहचान गई ……। ”परंतु श्रीमती के लट्ठ
से जबाब से हमारी तो बोलती ही बंद हो गई । वे तपाक से बोली ,”
ज़्यादा मत फूलो…..उसका रोज का काम है ये …… मुस्कुराना ….. और गुड मॉर्निंग करना
…ज्यादा हवा में मत उड़ो । ”
अब हम भला
क्या जबाब देते …. उनका जबाब ही ला जबाब था । हमें मालूम था कि इस उड़ान में ख़ाना
पीना सभी फ़्री था । इसलिए हमने सोच रखा
था कि खाने पीने में कोई कमी नहीं रखनी है । जो भी आएगा ले लेंगे। पूरे रास्ते खाएँगे पीयेंगे और सो जाएँगे ….. । सीट
के सामने ही टी वी लगा था आराम से बिना किसी बाधा के देखेंगे ,क्योंकि घर के टी वी का रिमोट तो श्रीमती जी के हाथों में रहता है आज हम बिना किसी रोक टोक के आराम से टी वी के चैनल
भी बदल सकते हैं। भले ही कुछ घंटों के लिए ही सही टी वी के सामने हम आज अपनी
मर्ज़ी के मालिक थे ।
हवाई जहाज़ के उड़ान भरते ही जब भी कोई उड़न
सुंदरी हमारी सीट के पास से गुजराती तो हमें बस एक ही इंतज़ार रहता कि कब कुछ खाने
पीने का सामान लाए । आख़िर सब फ़्री जो
मिलने वाला था । हालाँकि वे सब टिकिट में पहले ही वसूल कर लेते हैं । इसलिए अपने
भुगतान की वसूली करने में भला हम पीछे
क्यों रहें ? लेकिन जब भी हम हसरत भरी निगाहों से उनकी
ओर देखते तो श्रीमती की तीखी नज़रें तुरंत हमें ताड लेती और हमारी तरफ़ उनकी ये
तीखी नज़रें देखते ही हमारा दिल बैठने लगता । वो अच्छा हुआ कि थोड़ी देर बाद ही एक ट्रॉली लिए
उड़ान सुंदरी प्रकट हुई और नाश्ते का पैकेट
देते हुए ड्रिंक्स के विषय अंग्रेज़ी में कुछ बोला । लेकिन हम आधा अधूरा ही
समझ पाये । फिर भी उसकी ट्रॉली में सजे पेय की तरफ़ इशारे से ही समझा दिया
……….दिस… दिस…. एंड दिस ……. । उसने पहले तो हमारी तरफ़ देखा लेकिन फिर बड़े अदब से
तीन तरह का पेय हमें दिया और आगे बढ़ गई । श्रीमती जी को हमारी यह हरकत बिल्कुल पसंद नहीं
आई। हमारा हाथ दबाते हुए उन्होंने कुछ आक्रोश में लेकिन धीरे से कहा ,” क्या कर रहे हो । ” लेकिन हमने पक्के बेशर्मों की तरह उनकी तरफ़ आँख उठा
कर देखने का भी कष्ट नहीं किया । क्योंकि हमें मालूम था कि भाषण सुनने से अच्छा है
कि हम फ़िलहाल खाने पीने पर ध्यान दें। हमें तो पैसे वसूल करने थे इसलिए हमारा
सीधा जबाब था कि जब खाने के पैसे टिकिट के साथ लेने में उन्हें कोई शर्म नहीं हैं
तो भला हमें शर्म किस बात की ?
हमने तुरंत नाश्ते का पैकेट खोला और साथ ही तीन
तरह के पेय में से पहले एक खोला । उसका टेस्ट कोका कोला जैसा था …जैसा क्या था वही
थी …… हम गटागट एक साँस में ही गटक गए । दूसरे में कुछ गर्मागर्म सा लगा खोला। तो उसमें कॉफ़ी थी हमने तुरंतवो भी पी ली । हालाँकि
श्रीमती जी ने समझाया कि क्या कर रहे हो पहले ठंडा और अब गर्म ….. । पर हमें ठंडे गर्म की कोई चिंता नहीं थी हमें तो
पैसे वसूलने थे । आस पास के लोग भी शायद
देख रहे थे लेकिन मुझे क्या ……? जब पैसा दिया है तो फिर भला शर्म
कैसी?
अभी तो एक
गिलास और बाक़ी था । वो भी तो पीना था । इस बीच क्या पता दोबारा नंबर आ जाये तो
फिर से भी लेना था। कॉफी के बाद अब तीसरे गिलास की बारी थी । हमने वो भी खोल ही
लिया ….. आख़िर टिकिट के पैसे जो वसूल करने थे ।
इस बार के
गिलास के पेय का स्वाद कुछ अच्छा नहीं था । लगा जैसे कोई दवा पीनी पड़ रही है …… लेकिन जब
ले ली तो पीनी ही थी । श्रीमती जी कहती ही रही कि आप कर क्या रहें हैं कभी ठंडा
कभी गर्म और अब फिर ठंडा ……ये कर क्या रहे हैं आप …….?परंतु हम कानों में तेल डालकर बैठे थे । हमें तो कुछ सुनना ही नहीं था । लेकिन
तीसरे गिलास के पेय को पीने के बाद ,अब हमें लग रहा था कि हवाई
जहाज़ तो हवा में उड़ ही रहा था लेकिन हम तो अंदर ही अंदर किसी दूसरी ही उड़ान में
उड़ने लगे थे । लग रहा था कि हम सीट पर बेल्ट बंधी होने के बाद भी सीट से कई फिट
ऊपर उड़ रहे हैं। तभी हमने देख कि वह उड़ान सुंदरी एक बार फिर हमारी सीट की तरफ़
जैसे ही बढ़ी तो हमने न जाने किस धुन में कह दिया कि वन मोर ड्रिंक प्लीज़ । इतना कहते ही उसने तुरंत एक गिलास बढ़ाया तो
हमने दो का इशारा किया उसने दो रख दिये । स्वाद अच्छा नहीं था फिर भी हम एक एक
करके दोनों ही तुरंत डकार गये । अब हम सीट से कुछ ओर ऊपर उड़ने लगे थे । साथ ही
आँखें भी भारी हो गई थी ।
कब आँख लग गई
पता ही नहीं पड़ा । हमारी आँखें जब खुली
तो हमने देखा श्रीमती जी हमें पकड़ के हिला रही हैं और बारबार चिल्ला रही हैं ,” उठो ….उठो …. अमेरिका आ गया …..। ”हमने आँखें मलते हुए धीरे से आँखें
खोली तो देखा सभी लोग उतरने की तैयारी में हैं। खिड़की से देखा तो बाहर बहुत से हवाई जहाज़ खड़े
थे । जिसे देख के लगा कि हम सच में अमेरिका आ ही गया । लेकिन हमारा दोनों समय का भोजन …….गया पानी में
…..टिकिट के साथ ख़ाना भी बुक था ।
डॉ० योगेन्द्र मणि कौशिक
C-504 त्रिपोलीस
झालवाड़ रोड, कोटा- 324005
राजस्थान