सत्य का सूर्य

अरुणिता
द्वारा -
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सत्य का तेज है सूर्य समान,

इसकी तपिश के आगे...

झूठ का बादल कहाँ टिक पाता है?

 

करे लाख कोशिश अपने बचाव में...

पर अंततः जल ही जाता है!

सत्य का प्रखर ताप ऐसा,

हर फ़रेब क्षण में पिघल जाता है!

 

झूठ दबाए कभी दबता नहीं,

 रेत है यह बंद मुट्ठी का...

बंद मुट्ठी से भी निकल ही जाता है!

 

है जो सत्य का पूजारी,

विघ्नों से कभी वो डरता नहीं...

हो विकराल परिस्थितियाँ तो क्या,

लक्ष्य से अपने वो कभी डिगता नहीं!

 

असत्य घोर तिमिर का साया है,

 इसकी प्रकृति ही छल और माया है!

अद्भुत आकर्षण शक्ति इसमें

पर, क्षणभंगुर इसकी काया है!

है असत्य का अनुयायी जो,

नामो निशान उसका मिट जाता है!

सत्य पथ पर रहे जो नित अग्रसर,

मरकर भी वो नाम अपना...

सदा के लिए अमर कर जाता है!

 

अनिता सिंह

देवघर, झारखण्ड

 

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