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आओ बातें करें

 

 
                रवि आने से पहले नभ,

आभा मंडित हो जाता।

अरुणिता गगन में छाती,

खग कलरव मन को भाता।।

तन आनन्दित हो जाता,

 नूतन विचार मन आता।

सब रहे सदा सुखकारी,  

कलयुग, सतयुग हो जाता।।

मानव जीवन अति सरल है और अचला पर चलायमान भी। अरुणिमा रूपी दैवत्व की अदृश्य किरणें इस जीवन को सदैव निर्मल,निर्झर,निष्क्षल, निर्विकारी जामा पहनाने की जन्म से सतत प्रयास करती रहती है। पर इस माया रूपी संसार में काया रूपी नर-नारी आते ही लाग-लपेट और अपने-पराये के जंजाल में फँसते चले जाते हैं। संबंधों की प्रगाढ़ता , विरलता में क्षण मात्र में बदल जाती है। मन पर संबंधों की बदली छाने लगती है। मानो पूरी काया पर रौद्रता व द्वेषता नृत्य कर रही हो।

इस पत्रिका की कृतियाँ व रचनायें हम सभी सुधी पाठकों के हृदय-तल में सूर्योदय से पहले अंबर में फैले आभा-मण्डल की तरह अरुणिता फैलायेगी जिससे हम सभी का मन निर्मल, निर्झर, निष्क्षल व निर्विकारी हो जाएगा और तन प्रमुदन कर नाच उठेगा ऐसा मेरा विश्वास है।

आज अरुणिता को अपने नये कलेवर व नूतन रचनाओं के साथ आपके कर-कमलों में समर्पित करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है।

बस आपका

प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह

आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी,  विक्रम संवत २०८०