लिखना चाहूँ गीत प्रेम का,
पर फिर भी लिख ना पाऊँ मैं।
कैसे लिख दूँ शब्दों में कि,
कितना तुझको चाहूँ मैं।
वर्ण-शब्द गागरिया ढूँढी,
कि शब्दों को विस्तार मिले।
प्रेम के इस ढाई अक्षर से,
आगे बढ़ ना पाऊँ मैं।।
देख उसे शृंगार करूँ मैं,
वो देख मुझे शृंगार लिखे।
मैं समझूँ उसे जीवन अपना,
और वो मुझको प्यार लिखे।
नैनों में बस प्रेम को भरके,
उसे देखना चाहूँ मैं।
कैसे लिख दूँ शब्दों में कि,
कितना तुझको चाहूँ मैं।
वो मृग मैं कस्तूरी उसकी,
हरपल उसका ध्यान धरूँ।
ख़ुशबू बनके बिखरूँ ऐसे,
जैसे उसमें जीवन-प्राण भरूँ।
ध्यान धरूँ मैं जब-जब उसका,
अपने भीतर उसको पाऊँ मैं।
कैसे लिख दूँ शब्दों में कि,
कितना तुझको चाहूँ मैं।
अम्बिका गर्ग ‘अमृता’
कालापीपल,ज़िला-शाजापुर
मध्यप्रदेश