हर कहानी, हर किस्से को।
बातों में लिपटी बातें,
हर तज़ुर्बे को कहती है।
आदमी...
यों ही सलाहकार नहीं,
उसने अनुभव लिये है;हर घटना और दुर्घटना के बाद।
उसका हर शब्द,
गवाह है इस बात का;
कि किस्से-कहानियाँ बनायी नहीं जाती;
बल्कि, घटित होती है,
या कि भोगी जाती है।
कभी-कभी किरदार,
कहानी बनकर कहानी कहते है।
कभी कहानियाँ,
किवदंतियाँ बन जाती है
और शब्द...,
हमेशा बोलते है,
हर कहानी, हर किस्से को।
संवेदनाओं के साथ,
एक तज़ुर्बेकार की तरह।
अनिल कुमार केसरी
भारतीय
राजस्थानी