प्रकाश की ओर बढ़ना..
बढ़ाना चाहता हूँ ।
उन्नति का विषय पढ़ना मैं
पढ़ाना चाहता हूँ..
अज्ञान तम से जग को
छुड़ाना चाहता हूँ।
बिना डोर की पतंग को मैं
उड़ाना चाहता हूँ।।
जनहित के लिए सोचना
मेरा धर्म है, क्योंकि
मैं , मैं तो शिक्षक हूँ।..
कर्तव्य और अधिकार का
सही आकलन करता हूँ।
अशिष्टता के दुष्परिणामों से
सदैव ही मैं डरता हूँ।।
बाधाओं से कभी नहीं
डरना है मुझे।
जीने के लिए ही तो
मरना है मुझे।।
प्रतिभाओं का अंकुरण
करना है मुझे।
ज्ञान की रिक्तियों को भी
भरना है मुझे।।
अधिकारों का भी मन में
कोई मोह नहीं।
मेरा किसी से इस जग में
कोई द्रोह नहीं।।
मानवता के लिए जीना ही
मेरा मर्म है, क्योंकि
मैं ,मैं तो शिक्षक हूँ।
नियति के बनाए मार्ग पर
ईमानदारी से बढ़ता हूँ।
जीवन के निर्माण के लिए
आदर्श चरित्र पढ़ता हूँ।।
इसलिए ही मेरा व्यक्तिगत
व्यवहार नर्म है, क्योंकि
मैं, मैं तो शिक्षक हूँ।
नैतिक मूल्य ही मेरे
आभूषण प्रिय हैं।
मैंने विनम्रता के वस्त्र
धारण किए हैं।।
लालच, असत्य, हिंसा,
अनाचार और द्वेष।
पतन के हैं कारण और
मन के हैं क्लेश।।
उनमें लिप्त रहना जीवन के लिए शर्म है,
क्योंकि
मैं, मैं तो शिक्षक हूँ।
पूनम तोमर