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दीपावली

 


दीपावली पर्व खुशिओं का,
आओ इसे मनायें ।
घर की सभी मुंडीरों पर,
माटी के दिये जलायें।।

 

जगमग-जगमग हो सारा जग,

प्रेम-लहर बन झूमें।

प्रीति करें मनुहार करें सब,

मन से मन को चूमें।।

 

यही आज वो दिवस अनोखा,

राम अयोध्या आये।

हर नर-नारी प्रमुदित मन से,

गीत सुमंगल गाये।।

 

दीवाली में माँ-गणेश की,

जो नर स्तुति करता।

श्री प्रसाद पाकर उनका,

भव-सागर पार उतरता।।

 

जो परिवार-कुटुंब साथ में,

बैठ अर्चना करते।

महाभोग गणपति-लक्ष्मी को,

प्रेम से अर्पित करते।।

 

सुख-समृद्धि-शांति-सुचिता का,

होता घर में वास।

अंतर्मन भी जगमग करता,

होता दिव्य प्रकाश।।

 

यह उत्सव है परम अलौकिक,

हर घर लक्ष्मी आती।

कर सबका कल्याण जगत में,

'सर्वेश्वरि' कहलाती।।

 

ये त्योहार परम रस जैसा,

अति पुनीत पावन है।

हर पल सुखद,सुमंगल कारी,

हर छन मन भावन है।।

 

आओ हम सब क्रोध मिटा कर,

मन के दीप जलायें।

निश्छलता के रस को पीकर,

सत्प्रेमी बन जायें।।


प्रोफेसर सत्येन्द्र मोहन सिंह

रूहेलखण्ड  विश्वविद्यालय बरेली उत्तर प्रदेश