चाह को राह से
तू हटा दे ।
ईश को अपने मन में
बसा ले ।
तू संवर जाएगा
तू निखर जाएगा ।
सत्य के द्वार पर
तू पहुँच जाएगा।
फिर न होगा कोई
द्वेष करता हुआ ।
हर कोई तुझसे
मिलने को इतरायेगा ।
मिट जायेगें बंधन
सारे तेरे ।
शांति का द्वार
खुलता चला जायेगा।
प्रो0
सत्येन्द्र मोहन सिंह
रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय
बरेली,
उत्तर प्रदेश