निज भाषा अपनाओ मातृभूमि गीत गाओ ।
हिन्दी के विकास के प्रयास
का आव्हान है ।।
यशगान करो भारत माता के
वैभव का ।
हिन्दी राष्ट्र की भाषा है
हिन्दी स्वाभिमान है ।।
बृज और अवधि की अविरल धारा
है ये ।
संस्कृत है जननी ये उर्दू
का सम्मान है ।।
गायक में देश राग का ये
मेरा परिचय ।
हिन्दी मेरी भाषा और देश
हिंदुस्तान है ।।
तुलसी, कबीर, सूर, ग़ालिब की धरती ये ।
इस धरती पे गीता, मानस का ज्ञान है ।।
महावीर, गौतम की वाणी का प्रभाव यहाँ ।
प्राकृत व पाली का अमूल्य
वरदान है ।।
कश्मीर से निकोबार तक
हिन्दी का राग हो ।
कुहू-कुहू गा रही ये कोयल
की तान है ।।
मुझको सदा ही अभिमान इस बात
का है ।
हिन्दी मेरी भाषा और देश
हिंदुस्तान है ।।
सारी दुनियाँ के मानचित्र
पे हिन्दी भाषा है ।
हर एक देश में अब हिन्दी का
मान है ।।
यूएनओ में हिन्दी के प्रभाव
के ही भाव है ।
सुबह ये है हिन्दी की नहीं
अवसान है ।।
सभ्यता और संस्कृति पावन है
दुनियाँ में ।
इस बात का तो सारे देश को
गुमान है ।।
जन्म लूँ हज़ार बार किन्तु
बार-बार यहीं ।
हिन्दी मेरी भाषा और देश
हिंदुस्तान है ।।
यशवंत चौहान
5/242, गुरुराजेंद्र
कॉलोनी