"ठहरो”,
इस कड़कती हुई आवाज को सुनते ही हेमंत के मन की उड़ान और मोटरसाइकिल की गति दोनो को ब्रेक लग गये,,।
बाँध किनारे पीपल के पेड़ की ओट से दो साये निकल आये,,।
एक ने रिवाल्वर कनपटी से सटाया और दूसरे ने तीव्रता से उसकी सभी जेबे खाली कर ली,।
कमेटी के तमाम पैसो समेत उस निर्दयी ने उसकी नन्ही परी की पायल भी निकाल ली जिसकी वजह से इतनी देर हुई थी,,।
जान की खैर मनाते हूऐ हेमंत ने ज्यो ही मोटरसाइकिल स्टार्ट की,, एक फुला हुआ पर्स रौशनी से नहा गया,। जो हड़बड़ी के कारण लुटेरो की जेब से गिर गया था,,।
हेमंत ने हार्न देकर पुकारा,,,ओ भाई साहब,, आपका पर्स गिर गया,,।
लुटेरे हैरत मे पड़ गये,,, हमने तुम्हारा सारा धन लूट लिया फिर भी,,? गजब आदमी हो ,,।
हेमंत मुस्करा उठा,, कोई गजब नही ,,,,सब कुछना लुटना तुम्हारे बस का नही,, जो तुम लूट सकते थे लूट लिऐ, , लेकिन मेरे पास और भी कई अनमोल चीजें है जिन्हें हम खुद बचा सकते हैं, मै वही बचा रहा हूँ ,,,,।।
डॉ० मोहन लाल अरोड़ा