लोग हैं बेशक गिराते जलवे
ना इतना जल्दी उल्फ़त लगा.
छली दुनिया छलती रहेगी
एक ही चूक बस देगी दग़ा.
जिसके दर पर प्रीत लगी
उसी के आंगन गया ठगा.
दास्तां दिल को छूने लगी
और बांहे उसका सगा लगा.
जिसको अमलन मैं ने समझा
अब तो वो सराब होने लगा.
मेरी रुसवाइयां देखो 'ललन'
शबनम सी देने लगी दगा.
ललन प्रसाद सिंह
वसंत कुंज, नई दिल्ली-70