जनवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नई सारिका का प्रकाशन

अब देश के विभिन्न राज्यों के ICSE के छात्र पढ़ सकेंगे डॉ०कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव ' की रचनाएं कालपी (जालौन, उ. …

मृत्यु दण्ड

हज़ारों वर्षों की नारकीय यातनाएं भोगने के बाद भीष्म और द्रोणाचार्य को मुक्ति मिली। दोनों कराहते हुए नर्क के दरवाज़े से बा…

बेवफा कौन

मेघना अपनी मां के साथ शाम को पार्क में टहलने जाया करती थी। साहिल भी शाम को कुत्तों को ब्रेड खिलाने पार्क में आ जाया करत…

दर्द-ए-दिल

"शीला मुझे तुम्हारी बहुत फिक्र हो रही है, और होगी भी क्यों नहीं; उनतीस बरस की जो हो गई हो। शादी की उम्र …

घुँघरू वाली पायल

सुनिए..! मुझे कुछ पैसे दीजिए, आज मैं सलोनी के लिए घुंघरू वाली पायल लेकर आऊँगी अगले सप्ताह उसका दूसरा जन्मदिन है। बिल्क…

साइबर बुलिंग

वर्तमान वर्चुअल जगत के सन्दर्भ में शिक्षण संस्थानो में साइबर बुलीइंग व स्लेन्डर जैसी समस्याओं व उनके निराकरण का अध्ययन …

नयी शिक्षा नीति

वर्तमान समय में देश की शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन होते दिख रहे हैं | सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि समूचे राष्…

बीति ताहि बिसारि दे

अतीत वर्तमान से हमेशा अच्छा लगने वाला हुआ करता है, अक्सर लोग ऐसा कहा करते हैं। यही कारण है कि अपने वर्तमान में कितना भी…

अप्रासंगिक होती आलोचना

हिंदी साहित्य में आज यह स्थिति है कि स्वतः कोई पाठक आपकी रचनाएं नहीं पढ़ता। उन्हें पढ़वाने के लिए आपको स्वयं प्रयास करन…

अभिव्यक्त संवेदना की यथार्थवादी पृष्टभूमि का व्यापक परिदृष्य

“ जीवन एक सतत् चलने वाली अनुभूतिपरक प्रक्रिया है जो विभिन्न घटनाक्रमों में नवीनतम सीख को स्वीकार करने क…

लांसनायक दृग पाल सिंह राठौर

लांसनायक दृग पाल सिंह राठौर का जन्म 23 दिसम्बर 1945 को वीरों की धरती जनपद शाहजहांपुर के गाँव नौगवां में हु…

गजल

साथ हम भी जमाने के चलते रहे वक्त का कुछ ना एहसास हमको हुआ जिंदगी का मुझे किसने पैगाम दी कौन देता रहा हर तरह बद्दुआ। …

हिंदी भाषा पर दोहे

वाहक संस्कृति की बने ,है भारत की शान । बना राज भाषा इसे ,बढ़े देश का मान ।। सरकार तर्क दे रही , कठिन बहुत हैं श…

उसकी चिट्ठी

नींद नहीं है इन रातों में, करती छुपम–छुपाई है। चाँद रोशनी की मिली झलक , है खिड़की पर दुब…

है समंदर लबालब

उसको अपनी कहानी बता न सका उस पे हक भी अपना जता न सका जब उसने बताया मुझे कुछ जरा मैं उसके कहे को पचा न सका बूंद ऐ…

समय के फेर

करू–करू लोगन के बोली, मोला अब्बड़ रोवाथे। कच्चा लकड़ी कस गुँगवावत, अंतस के पीरा सहिथँँव, …

वो शाम कुछ अजीब थी

वो शाम कुछ अजीब थी ……! रात के क़रीब थी । रात गहरा रही थी शायद कुछ बता रही थी । इस ढलती रात में समेट रही थी कुछ ख़्वा…

विकसित राष्ट्र के पथ

गांव के सरहद वाली पगडंडी ही तब एक कोस दूर वाली बड़की पक्की सड़क पर ले जाती थी तब जाकर पास के बाजार या शहर जाने को …

मन शुद्ध हो सकता है

नहीं समझ पाता हूँ मन में द्वेष भाव क्यों आता है न चाहने पर भी कोई बात ध्यान में आ जाने पर उस व्यक्ति के प्रति…

मैं हूँ ना

सब कुछ ठीक हो जाएगा , धर्यै मत खोना तुम कभी। आए कभी मुसीबत जीवन में ,  याद रखना सदा " मैं हूँ ना "…

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