लांसनायक दृग पाल सिंह राठौर का जन्म 23 दिसम्बर 1945 को वीरों की धरती जनपद शाहजहांपुर के गाँव नौगवां में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सुन्दर सिंह था। लांस नायक दृग पाल सिंह अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 23 दिसंबर 1965 को 20 साल की उम्र में भारतीय सेना की राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हो गए थे और राजपूत रेजिमेंटल सेंटर में अपना प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात 15 राजपूत रेजिमेंट में तैनात हुए।
भारत पाकिस्तान युध्द - 1971 जिसे ऑपरेशन कैक्टस लिली भी कहा जाता है, इसके दौरान 15 राजपूत रेजिमेंट पंजाब की सीमा पर तैनात थी । जैसे ही 3 दिसंबर 1971 को युद्ध की घोषणा हुई , पाकिस्तानी सेना सुलेमान बॉर्डर की तरफ से हमारे क्षेत्र में अन्दर की तरफ बढ़ना शुरु कर दिया । बेरीवाला, गुरमी खेड़ा और पक्का गाँवों में हमारे सैनिकों से युद्ध शुरू हो गया । दुश्मन को आगे बढ़ने से रोकने के लिए हमारी सेना की 15 राजपूत रेजिमेंट के साथ 4 जाट और 3 असम बटालियन ने जवाबी हमले शुरू कर दिया ।
15 राजपूत रेजिमेंट को बेरीवाला पुल और गाजी पोस्ट पर कब्जा करने का आदेश दिया गया । लांस नायक दृग पाल सिंह 15 राजपूत रेजिमेंट की एक सेक्शन के सेक्शन कमांडर थे और गाजी पोस्ट पर हमले का नेतृत्व कर रहे थे । इस पोस्ट के लिए यह लड़ाई फाजिल्का सेक्टर की सबसे भीषण लड़ाई में से एक थी क्योंकि यह आमने सामने की लड़ाई थी । इस लड़ाई में 15 राजपूत रेजिमेंट के बहुत से जवान घायल हो गए। लांस नायक दृग पाल सिंह ने देखा कि दुश्मन की दो मीडियम मशीन गन 15 राजपूत रेजिमेंट के सैनिकों पर भीषण फायरिंग कर रही थीं। शत्रु की चौकी पर लगी यह मीडियम मशीन गनें हमारी सेना के जवानों को आगे बढ़ने से रोक रही थीं और यह मीडियम मशीन गनें पिलबाक्सों से सुरक्षित थीं।
लांसनायक दृग पाल सिंह राठौर ने इन मीडियम मशीन गनों की अहमियत को समझा और निश्चित किया कि इन मशीन गनों को शांत करना जरूरी है। वह अपने दो जवानों को साथ लेकर अपनी जान की परवाह न करते हुए रेंगकर पहले बंकर के पास पहुंचे। पहले बंकर में एक ग्रेनेड को धीरे से फेंक दिया। एक भयानक आवाज के साथ इस बंकर में मौजूद सारे पाकिस्तानी सैनिकों के परखच्चे उड़ गए।
इसके बाद उन्होंने दूसरे बंकर की तरफ रेंगते हुए बढ़ना शुरू किया। इसी बीच मीडियम मशीन गन का एक ब्रस्ट फायर उनके बायें कंधे को पार कर गया। उनके कंधे से खून की धारा बहने लगी। बुरी तरह घायल होने के बावजूद वह रेंगते हुए 06 फुट पर स्थित दूसरे बंकर तक पहुंचने में कामयाब रहे। वह दूसरे बंकर पर ग्रेनेड फेंकने ही वाले थे तभी दुश्मन ने उनके ऊपर स्वचालित हथियार से ब्रस्ट फायर झोंक दिया। यह ब्रस्ट फायर सीधे उनकी छाती में लगा। उनकी इस साहसपूर्ण कार्यवाही से पाकिस्तानी सैनिक घबरा कर भाग खड़े हुए। इस चौकी पर रखा हुआ भारी मात्रा में गोला बारूद और उनकी मीडियम मशीनगन हमारे कब्जे में आ गयी। इस चौकी पर कब्जा हो जाने पर हमारी सेना को आगे बढ़ने में आसानी हो गयी। उनकी छाती में लगा हुआ ब्रस्ट फायर काफी घातक था। अपने कर्तव्य का पालन करते हुए माँ भारती का यह लाल चिर निद्रा में लीन हो गया।
लांसनायक दृग पाल सिंह राठौर की निडरता, साहस और कर्तव्य परायणता के लिए 13 दिसम्बर 1971 को भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत युद्ध काल के दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। लांसनायक दृग पाल सिंह राठौर की वीरता की याद में फाजिल्का सेक्टर के गाँव आसफवाला में इनकी प्रतिमा लगाई गई है।
हरी राम यादव
सूबेदार मेजर (से०नि०)
लखनऊ, उत्तर प्रदेश