गांव के सरहद वाली
पगडंडी ही
तब एक कोस दूर वाली
बड़की पक्की सड़क पर
ले जाती थी
तब जाकर पास के बाजार
या शहर जाने को
सवारियां मिल पाती थी.
कल की पगडंडी
आज पक्का सड़क
और
बड़की पक्की सड़क
राष्ट्रीय उच्च मार्ग में
तब्दील हो गया है.
कहीं भी जाने
की जरूरत और इच्छा
होते ही लोग
जल्दी पंहुच जाते हैं
अनाज और कृषि उत्पादों
की निर्भरता अब
साहुकारों के भरोसे
नहीं रहती हैं .
आज सबके घर
एक या एक से अधिक
टूव्हीलर,फोरव्हीलर
की पंक्ति हैं
गांव की गली-गली
पक्की हैं
पीने को नल का पानी,
बिजली, इंटरनेट यादि
विकास के मापदंड
पूरे हो रहे हैं
फिर भी विकास की भूख
नहीं जाती हैं .
यही गांव की जागृत भूख
विकास को पंख दे
राष्ट्र को विकासशील
पथ से
अग्रसर कराती हुई
विकसित राष्ट्र की ओर
उन्मुख करती हैं .
ललन प्रसाद सिंह
वसंत कुंज, नई दिल्ली-70