वर्तमान समय में देश की शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन होते दिख रहे हैं | सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि समूचे राष्ट्र को समग्र रूप से देखने का प्रयास किया जा रहा है | अर्थात सम्पूर्ण राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था को एकरूप करने की कोशिश की जा रही है | ऐसा करना आसान भी नहीं है क्योंकि भारतवर्ष वस्तुतः राज्यों का एक संघ है | देश में शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है | राज्य अपने अनुसार शिक्षा व्यवस्था लागू करने के लिए बहुत सीमा तक स्वतन्त्र हैं | वैसे भी हमारा देश बहुत विशाल है | लगभग सभी राज्यों की अपनी भौगोलिक परिस्थितियाँ, अपने रीति-रिवाज, वेशभूषा और भाषा अलग-अलग ही हैं| इसलिए कहा जा सकता है कि एक जैसी शिक्षा व्यवस्था समूचे राष्ट्र में लागू करना इतना भी सरल नहीं है |
अगर शिक्षा के माध्यम की बात की जाए तो प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता | परिवर्तन के इस दौर में क्या यह आवश्यक नहीं कि अब अग्रेज़ीं और अग्रेज़ियत के बोझ से बच्चों को मुक्त किया जाए? देश में डेढ़ दर्जन से भी अधिक समृद्ध भाषाएँ हैं जिनके पास अपनी सुस्पष्ट लिपि भी है और सम्पन्न शब्दकोष भी | राज्यों को अपनी स्थानीय भाषाओं को ही प्राथमिक शिक्षा के माध्यम के रूप में बढ़ावा देना चाहिए | शिक्षा मनोविज्ञान भी यही कहता है |
पाठ्यक्रम में भी राज्यों अपने अनुकूल परिवर्तन करने ही होंगे | जिस तरह की परिस्थितियाँ भारत के समुद्र तटीय राज्यों की है ऐसी पंजाब, हरियाणा या फिर उत्तर प्रदेश की नहीं है | पाठ्यक्रम को इस तरह से संरचित करने की आवश्यकता होती है ताकि युवाओं को स्थानीय स्तर पर जीविकोपार्जन करने में सुविधा हो |
परन्तु यहाँ यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि हमारी एक साझी संस्कृति है | कोई पंजाबी बोले या तमिल, कोई सिन्धी बोले या मिजो, हैं तो हम सब भारतवर्ष की सन्तानें ही | इसलिए हमारी शिक्षा में वे तत्व अनिवार्य रूप से सम्मिलित होने चाहिए जो हम सबके अन्दर एक भारतीय होने का गौरव स्थापित कर सके | हिन्दी देश के एक बड़े भूभाग की सम्पर्क भाषा है लेकिन तेलुगु या मलयालम भी हमारी ही भाषा हैं | भाषा और क्षेत्र के आधार हमारे अन्दर तनिक भी वैमनस्य नहीं होना चाहिए | राजेन्द्र चोल भी हमारे नायक और महाराजा रणजीत सिंह भी | प्रभु श्रीराम द्वारा स्थापित मर्यादाएँ भी हम के लिए है और भगवान कृष्ण द्वारा दी गयी शिक्षाएँ भी सभी के लिए हैं |
हमारी शिक्षा हमारे राज्यों की विविधताओं को एकता सूत्र में पिरोकर एक संगठित और सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण करे | शिक्षा देश के विभिन्न धर्मों के लोगों में देश के प्रति आदर का भाव जगाये | किसी भी शिक्षण संस्था को देश के विरुद्ध आचरण के विचार छात्रों के मन मस्तिष्क में भरने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए | देखते हैं कि नयी शिक्षा नीति-2020 देश की आकांक्षाओं पर कितना खरी उतरती है |
जय कुमार
शामली, उत्तर प्रदेश