प्रभु श्रीराम का भव्य मन्दिर बनकर तैयार हो गया है | सभी भारतवासी हर्षित हैं फिर वो चाहे किसी भी मत-पन्थ या समुदाय के हों | इस अवसर पर मिथिला से भी लोग प्रभु को अपने दामाद के रूप में देखते हुए विभिन्न उपहार लेकर अयोध्या धाम पधार रहें हैं | उनकी श्रृद्धा मन को प्रफुल्लित करने वाली है | कुछ लोग जिन्हें पीड़ा हो रही है या किसी विवशता के कारण पीड़ा होना दर्शा रहे हैं, ऐसे लोगों से आग्रह है कि यदि श्रीराम में आपकी वो आस्था नहीं है जो ईश्वर के लिए होती है तो आप यही समझ कर अपने विषाद को कम कर लें कि ये भारतवर्ष वही भूमि है जिस पर श्रीराम ने एक महाराजा की तरह शासन किया है | न केवल श्रीराम ने अपितु ब्रह्मा से लेकर महाराज दशरथ ने और महाराज दशरथ के उपरान्त उनकी सन्ततियों ने | अब एक प्रजापालक और मर्यादा पुरुषोत्तम राजा को उनकी प्रजा ससम्मान उनके ही जन्मस्थान पर किसी भवन में विराजमान कर रही है तो किसी को कष्ट भी क्यों ही हो ?
वैसे उनका ये भवन कोई पहली बार तो बना नहीं है | काल प्रत्येक वस्तु और परिस्थिति का संहार कर देता है | ये संहार ही नये सृजन का आधार बनता है | भारतीय संस्कृति और सभ्यता तो इसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है| हमें अपने संहार भी स्मृत हैं और सृजन भी |वर्तमान कल्प की सृष्टि के सृजन से लेकर हमारे पूर्वजों ने बहुत ज्ञान और संस्कार अर्जित करके हमें विरासत के रूप में हमें प्रदान किये हैं | वसुन्धरा के अन्य भूखण्ड शायद इतने उर्वर नहीं रहे | बहुत सी सभ्यताएँ ऐसी नष्ट हुई कि फिर पनप ही न सकी | लेकिन भारतभूमि पर विधाता की कृपा आदिकाल से ही बनी हुई है | अब फिर से वही कृपा बरसी है तो चलिए उत्सव मनाते हैं और गौरव करते हैं आपने शानदार अतीत पर | यही गौरव की अनुभूति हमारे आने वाले कल का मार्ग प्रशस्त करेगी | हम फिर से विश्व को उन्नति और शान्ति का पाठ पढ़ा रहे होंगें |
सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ |
जय कुमार
प्रधान सम्पादक चतुर्दशी, कृष्णपक्ष पौष, विक्रम सम्वत् २०८०