नूतन वर्ष की शुभ नव बेला में
खुशियों की चादर में लिपटकर,
नभ के तारों की शीतल चाँदनी
आशाओं के दीपक जलाएं सब।
खग कलरव झरनों की झर-झर
कर्णप्रिय प्रकृति का संगीत मधुर,
निशा बीत गई अर्णिमा सुबह की
नव प्रेरणा अंजली में भर लाए सब।
विगत वर्ष के कटु दर्द भरे क्षण
हृदय पर आघात, अश्रुपूर्ण नयन,
विस्मृत हो जाए विगत वर्ष संग
नव वर्ष की बेला में खो जाए सब।
कंटक बन किया हृदय का भंजन
दुःखद स्मृतियाँ और व्यग्र चितवन,
नहीं स्वर्णिम धूप रहा जब जीवन
नववर्ष कीआभा मे खो जाए सब।
जीवन कलश में उमंगों का सागर
नवमार्ग आरोहण, आल्हादित तरंगें,
हिमतुंग स्पर्श करता उल्लसित मन
नयनाभिराम प्रकृति मेंखो जाए सब।
भीनी-भीनी सुगंध पावन नव वर्ष की
अच्छाई के पुष्प विकसित वसुंधरा में,
नवतरुणी का अनुपम रूप सजाकर
खुशियों का आलिंगन कर पाए सब।
अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश