अतीत वर्तमान से हमेशा अच्छा लगने वाला हुआ करता है, अक्सर लोग ऐसा कहा करते हैं। यही कारण है कि अपने वर्तमान में कितना भी सुखी एवं समृद्ध होने पर भी व्यक्ति पीछे लौटकर बल्कि पीछे भागकर अपने अतीत को झपटकर पकड़ लेना चाहता है।
दूसरी ओर, बल देकर यह भी कहा जाता है कि जो बीत चुका है, वह क्योंकि किसी भी मूल्य पर लौटकर नहीं आ सकता, इस कारण उसे भुला देने में ही मनुष्य का भला है। मनुष्य को चाहिए कि जो व्यतीत हो चुका है, उसे भूलकर आने वाले कल को सजाने - सँवारने का प्रयत्न करे।
बहुत सम्भव है कि बीता कल जितना आकर्षक था, आज उतना लुभावना है, आने वाला कल उस सबसे भी कहीं बढ़कर सुन्दर एवं आकर्षक हो। फिर जो बीत चुका है, जो आ नहीं सकता, उसकी यादों की लाश को सीने से चिपकाए रखने से लाभ भी क्या ?
जीवन और समाज में अतीतजीवी को यो भी अच्छा नहीं माना जाता । ऐसे व्यक्ति की उपमा उस बन्दरिया से की जाती है- जो अपने मरे बच्चे को भी कई दिनों तक व्यर्थ ही सीने से चिपकाए घूमती रहती है।
बीती बातों को याद करते रहने को कब्रें खोदना या मुर्दे उखाड़ना भी कहा जाता है। कई बार व्यक्ति अपनी किसी कमी या गलती को छिपाने के लिए बीते का रोना रोने लगता है और कई बार अपनी वर्तमान दशा को छिपाने के लिए भी ऐसा करता है।
जो व्यक्ति पुराने के पीछे ही भागता रहता है, वह वर्तमान में कुछ नहीं कर पाता। इस प्रकार अपने भविष्य से भी प्रायः हाथ धो बैठता है। हाँ, एक बात अवश्य है, वह यह कि अपने वर्तमान को सँवारने और भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए बीते दिनों से प्रेरणा लेने के लिए उन्हें अवश्य याद करते रहना चाहिए। याद रहे, धारा को यदि अपने मूल उत्स (निकास स्थान) से पानी लगातार मिलता रहता है, तभी वह स्वच्छ रहकर आगे बढ़ती रहती है।
हम कौन है, हम क्या थे और आज क्या हो गए हैं, अतीत में झाँकने, अतीत का इतिहास दोहराते रहने से ही ये सभी तरह की जानकारियाँ सुलभ होकर वर्तमान और भविष्य को भी उन्नत या संतुलित बनाने की प्रेरणा बन सकती है।
" बीति ताहि बिसारि दे ' कहने का वास्तविक अभिप्राय यह है कि अतीत में घटी बेकार बातें, व्यर्थ के बवाल खड़ी करने और अपनी हीनता की भावना उजागर करने वाली बातें भुला देना ही अच्छा हुआ करता है। ऐसा करके ही व्यक्ति प्रगति और विकास की सीढ़ियाँ चढ़ सकता है। भविष्य के खलिहान में वैसी ही फसल उगेगी, जैसा बीज आज बोया जाएगा । अतीत हो चुके सड़े-गले बीज भविष्य के लिए कभी भी शुभ मंगलमय नहीं हो सकते। कहा भी गया है-
बीति ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ। जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ ॥ ताहि में चित देइ, बात जोई बनि आवै। दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त में खता न पावै ।। कह गिरिधर कविराय, यहै करु मन परतीती। आगे को सुख समुझिं, होइ बीती सो बीती ॥
जो कुछ मनुष्य आज करता है, उसी का अच्छा बुरा परिणाम उसे आगे चलकर भोगना पड़ता है। बीते में जो किया, उसका शुभ-अशुभ परिणाम तो हम अपने वर्तमान में भोग रहे होते हैं। फिर उसे ही दोहराते रहने से क्या फायदा ?
अन्त में, मैं यही कहना चाहूँगी- अब भी उठो। जागो! जो घटना घट चुकी है, उसे जाने दो। सावधान होकर देखो कि अब यानि आज क्या कर रहे हो? उसका नतीजा कल क्या आना है? फिर कल ऐसा क्या करना है कि जो सिर को ऊँचा रख सके।
रुचि शर्मा
काँधला
शामली , उत्तर प्रदेश